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आज है पर्यावरण के संरक्षण का पर्व हरेला - Harela wishes

आज हरेला है. हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख लोक पर्व है. हरेले को इष्ट-देव को अर्पित करके अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और सगे-संबंधियों की कुशलता की कामना की जाती है. हरेला पर्यावरण संरक्षण का पर्व भी है.

Today is the festival of environmental protection Harela
आज है पर्यावरण के संरक्षण का पर्व हरेला

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Published : Jul 16, 2020, 3:18 PM IST

नई दिल्ली/देहरादून:आज उत्तराखंड का पर्यावरण संरक्षण का प्रमुख पर्व हरेला है. पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में इसे बोया जाता है. रोजाना सुबह और शाम हरेले को पानी दिया जाता है. दो-तीन दिन में हरेला अंकुरित हो जाता है. इसे सूर्य की सीधी रोशनी से दूर रखा जाता है. इस कारण हरेले का रंग पीला होता है.

पीला रंग उन्नति और संपन्नता का प्रतीक है. हरेले की मुलायम पत्तियां रिश्तों में मधुरता और प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं. परिवार के बुजुर्ग सदस्य हरेला काटते हैं. सबसे पहले हरेला गोलज्यू, देवी भगवती, गंगानाथ, ऐड़ी, हरज्यू, सैम, भूमिया आदि समस्त देवों को अर्पित किया जाता है. इसके बाद परिवार की बुजुर्ग महिला परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वचन देते हैं.

हरेला गीत

यो दिन-मास-बार भेटनै रये

धरती जस आगव, आकाश जस चाकव होये

सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो

दूब जस पंगुरिये

हिमालय में ह्यो, गंगा ज्यू में पाणी रौन तक बचि रये

सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये

हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है-

1- चैत्र मास में - प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है.

2- श्रावण मास में - सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है.

3- आश्विन मास में - आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है.

चैत्र व आश्विन मास में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव का सूचक है.

चैत्र मास में बोया/काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है.

आश्विन मास की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है.

लेकिन श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता. श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कहीं-कहीं हर-काली के नाम से भी जाना जाता है. उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है. इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्वपूर्ण है.

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