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Published : May 2, 2023, 5:47 PM IST

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दिल्ली के मुक्त धारा सभागार में 'पतलून' के मंचन ने बांधा समां

फोरथ वाल प्रॉडक्शंस के बैनर तले रीतिका मलहोत्रा के निर्देशन में मुक्त धारा सभागार में मनीष जोशी "बिस्मिल" द्वारा लिखित नाटक "पतलून" का मंचन किया गया.

दिल्ली के मुक्त धारा सभागार में 'पतलून' का हुआ मंचन
दिल्ली के मुक्त धारा सभागार में 'पतलून' का हुआ मंचन

दिल्ली के मुक्त धारा सभागार में 'पतलून' का हुआ मंचन

नई दिल्ली: नई दिल्ली के मुक्त धारा सभागार में मनीष जोशी "बिस्मिल" लिखित नाटक पतलून का सफल मंचन किया गया. कार्यक्रम फेलिसिटी थियेटर के सहयोग से निर्देशिका रीतिका मलहोत्रा द्वारा प्रमोद कुमार के मार्गदर्शन में किया गया. फोरथ वाल प्रॉडक्शंस के बैनर तले इसका मंचन किया गया. "पतलून" मनीष जोशी 'बिस्मिल' जी द्वारा लिखित एक हिंदी नाटक है. कहानी की शुरुआत कैनवास से होती है. जिंदगी का कैनवास, जहां सबके अलग- अलग लक्ष्य हैं. कहानी अपने सपनों के रंगों से कैनवास को रंगीन करने की बात शुरू होती है.

नाटक का मुख्य किरदार "भगवान" भी औरों की तरह एक गांव से आया साधारण मनुष्य है. पचास साल शोषण झेल कर जब उसे जिंदगी में एक सपना देखने का एक मकसद मिलता है तो इस सपने के लिए वह उतने ही असाधारण तरीके से मेहनत करता है. दुर्गम परिस्थितियों का सामना करता है और साथ ही ये सीख देता है कि चाहे जो हो, अपने लक्ष्य से "एक बार कहो कि तुम मेरे हो" और एक दिन उस लक्ष्य को, हकीकत में अपना बना लो.

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यूं तो भगवान के सामने एक पतलून खरीदने की चुनौती आती है, लेकिन उसका ये सपना, उसकी ये कल्पना एक लड़की के रूप में आकार लेने लगती है. अपने परिश्रम और आने वाली मुसीबतों के बीच उनसे लड़ता जूझता भगवान एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्ति कर लेता हैं, और ये साबित कर देता है कि विषम से विषम परिस्थिति भी एक बुलंद व्यक्तित्व को नहीं डिगा सकती. साथ ही एक और महत्वपूर्ण संदेश जो नाटक हमें देता है या यूं कहें कि हमसे पूछता है वह यह कि क्या हमने अपनी पतलून ढूंढनी शुरू कर दी है..? क्या हमें वो मिल चुकी है...? या क्या अब भी जिंदगी का कैनवास कोरा है और शुरुआत करना बाकी है ?

और अगर है तो खुद को टटोलो और अपने सपने के लिए, अपनी पतलून के लिए, पूरी हिम्मत के साथ, पूरे हौसले के साथ, गिरकर वापस उठने की ताकत के साथ अपनी यात्रा शुरू करो. अब से पहले इस नाटक का इतना अविस्मरणीय मंचन न देखा और न सुना होगा.

रीतिका ने इस नाटक की आत्मा को दर्शकों के दिलों में समाने का जो अद्भुत काम किया है, शुरू में नाटक के किरदार, भगवान का संघर्ष और एक घटना से उसकी दिशाहीन जिंदगी को मायने मिलना, दर्शकों को हंसाता भी है ओर नाटक का अंत आते-आते उन्हें रुलाता भी है.

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