नई दिल्ली: 15 अगस्त अब नजदीक है और लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल की तरह इस साल भी यहां के प्राचीर से तिरंगा फहराएंगे और देश को संबोधित करेंगे. वहीं, दूसरी तरफ देशभर के लोग हाथों में झंडा लिए स्वतंत्रता दिवस मनाते नजर आएंगे. जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, तब पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी लाल किले से तिरंगा फहराया था. इसके बाद लाल किला से ही अन्य प्रधानमंत्री 15 अगस्त के दिन झंडा फहराने लगे. आखिर झंडा फहराने के लिए लाला किला क्यों चुना गया? तो चलिए हम आपको इस स्टोरी के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि आखिर लाल किला ही क्यों
क्या कहते हैं डीयू के प्रोफेसर
डीयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ हम एकजुट हुए और एक आंदोलन शुरू हुआ. इसे हम क्रांति के तौर पर देखते हैं, वह 1857 है. इसी साल आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता सेनानी एकजुट हुए और एक मूवमेंट शुरू हुआ. इस पूरी लड़ाई को हम लाल किला से देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश की आजादी के समय यह एक ऐसा मोन्यूमेंट था, जहां हमें अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट होने में मदद मिली. उस दौरान लाल किला ही दिखा, जिसका इस्तेमाल किया गया. एक सिंबल के तौर पर सालों साल इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. उन्होंने बताया कि पंडित नेहरू ने लाल किला से 1947 से लेकर 1963 तक 17 बार भाषण दिया है.
उन्होंने बताया कि दिल्ली का पावर ऑफ सेंटर लाल किला ही रहा है. आगरा, फतेहपुर सीकरी सहित अन्य जगहों पर पावर ऑफ सेंटर बनाने का प्रयास हुआ, लेकिन वह नहीं बन पाया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी दिल्ली को ही पावर ऑफ सेंटर के तौर पर स्थापित किया. लाल किला अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले आंदोलन की पहचान बन गया था. अगर वह पहचान नहीं बनता तो लोगों को स्वीकार नहीं होता. इसलिए कहा जाता है कि मोन्यूमेंट एक मीनिंग कन्वे नहीं करते, बल्कि वह मल्टीपल मीनिंग कन्वे करते हैं. जैसे बनाने वाले का मीनिंग अलग होता है, इसके बाद उसे इस्तेमाल करने वाले का मतलब अलग होता है.
क्या कहते हैं जेएनयू के प्रोफेसर