दिल्ली

delhi

ETV Bharat / state

लेखक सच्चिदानंद जोशी से खास बातचीत, 'घर से ही बच्चों को सिखाएं हिंदी का सही उच्चारण'

डिजिटलाइजेशन के युग में किताबें पढ़ने की जो परंपरा है वह पीछे छूटती जा रही है. बोलचाल में हिंदी भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. हिंदी के प्रख्यात लेखक सच्चिदानंद जोशी ने साहित्य अकादेमी में लगी पुस्तक प्रदर्शनी में यह बात कही.

Special conversation with author Sachchidanand Joshi, teach children correct pronunciation of Hindi from home
किताबें पढ़ने की जो परंपरा है वह पीछे छूटती जा रही

By

Published : Nov 22, 2020, 4:15 PM IST

नई दिल्ली : डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ते कदम कहीं ना कहीं हमें पुस्तकों से दूर कर रहे हैं. किताबें पढ़ने की जो परंपरा है वह पीछे छूटती जा रही है. हिंदी के प्रख्यात लेखक सच्चिदानंद जोशी ने साहित्य अकादमी में लगी पुस्तक प्रदर्शनी में यह बात कही.

किताबें पढ़ने की जो परंपरा है वह पीछे छूटती जा रही
भाषा का गलत उच्चारण नहीं होना चाहिएईटीवी भारत से खास बातचीत में लेखक सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि आज भी हमारे देश में सबसे ज्यादा हिंदी बोली जाती है. ज्यादातर विज्ञापन, पोस्टर, सार्वजनिक संदेश, हिंदी भाषा में छपते हैं. लेकिन हम देख रहे हैं कि बोलचाल में हिंदी भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. सही उच्चारण, वर्णन, वर्णमाला है पर इनका इस्तेमाल नहीं होता है. लेकिन यह जरूरी है कि यदि भाषा का गलत इस्तेमाल हो रहा है या फिर गलत तरीके से उच्चारण हो रहा है तो उसे सही किया जाए क्योंकि हिंदी हमारी मातृभाषा है.



हर भाषा का सही उच्चारण और महत्व होना चाहिए

लेखक सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भाषा के प्रति संवेदनशीलता लोगों में बढ़ाने की आवश्यकता है. यदि आपके सामने आपके घर में कोई भाषा का गलत तरीके से प्रयोग करता है तो उसे टोकिए उसे रोकिए. क्योंकि कई बार हम हिंदी भाषा को गलत तरीके से बोलने पर अपने बच्चों को शाबाशी देते हैं. अंग्रेजी भाषा को कहीं ना कहीं ज्यादा तवज्जो दिया जाता है. लेकिन हर एक भाषा का अपना-अपना महत्व है और हर भाषा का सही उच्चारण और महत्व होना चाहिए.


किताबों से ज्यादा भौतिक चीजों में लोगों की हो गई है दिलचस्पी


लेखक ने कहा कि डिजिटलाइजेशन के चलते लोग ऑनलाइन किताबें पढ़ रहे हैं, किसी भी विषय को ऑनलाइन माध्यम से कंप्यूटर, लैपटॉप पर आसानी से पढ़ा जा सकता है. लेकिन जो किताबों की परंपरा है वह हमारे देश में बेहद प्राचीन है. पहले लोग अधिक से अधिक किताबें पढ़ते थे और गर्व से कहते थे कि मेरे पास इतनी किताबें हैं. लेकिन आज लोग भौतिक चीजों में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. उनमें ज्यादा व्यस्त रहते हैं लेकिन यदि हम एक पढ़े-लिखे सभ्य समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो जरूरी है कि लोग किताबों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाएं और ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ी जाए.

स्कूल जाकर किताबों से पढ़ना ही सही मायने में शिक्षा ग्रहण करना

उन्होंने मौजूदा स्थिति में ऑनलाइन माध्यम से हो रही पढ़ाई को लेकर भी कहा कि यह अभी सिर्फ थोड़े समय के लिए है. जब परेशानी खत्म होगी तो बच्चे स्कूल जाकर किताबों के जरिए पड़ेंगे. जो ज्यादा बेहतर है वही एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करेंगे. क्योंकि टीचर के साथ स्कूल में जाकर किताबों से पढ़ना है सही मायने शिक्षा ग्रहण करना है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details