नई दिल्ली:तीनों निगमों में सबसे अमीर मानी जाने वाली साउथ MCD लगातार कंगाली की ओर बढ़ रही है. एक तरफ जहां सिर्फ फाइनेंस कमीशन लागू होने और दिल्ली सरकार से फंड नहीं मिलने के चलते निगम कर्मचारियों की सैलरी निकालने के अलावा अन्य सभी मामलों में फिर से कर कदम रख रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. बीते कई सालों के ऐसे ही कुछ आंकड़े निगम की असली स्थिति बयां कर रहे हैं.
150 करोड़ से घटकर 16 करोड़ ही हुआ रेवेन्यू
साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ साउथ MCD में अपना राज कायम किया था. 2017 से 2018 यानी वित्तीय वर्ष साल 2017-18 में निगम के विज्ञापन विभाग का रेवेन्यू टारगेट 120 करोड़ था लेकिन असल में इस साल निगम ने 133.73 करोड़ रुपये कमाए.
अगले साल 2018-19 में रिवेन्यू बढ़कर 149.77 करोड़ हुआ लेकिन उसके बाद से जैसे इस रेवेन्यू को भी किसी की नजर लग गई. साल 2019-20 में निगम का रेवेन्यू टारगेट 160 करोड़ था लेकिन यहां निगम असल में 2017 के आंकड़ों से भी नीचे पहुंच गई. इस साल निगम ने कुल 128.57 करोड़ रुपये कमाए.
कोरोना को कारण बताकर साल 2020-21 में निगम में रेवेन्यू टारगेट 165 करोड़ से घटाकर 80 करोड़ किया गया लेकिन इस साल निगम को महज 16.63 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए.
विपक्ष ने बीजेपी को बताया जिम्मेदार
विपक्ष में बैठी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही रेवेन्यू के नीचे आते स्लोप के लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार बताती हैं.
नेता विपक्ष प्रेम चौहान कहते हैं न कि भारतीय जनता पार्टी खुद को कंगाल बताकर दिल्ली सरकार से फंड की मांग करती है लेकिन खुद अब ही टैक्स काटकर, कभी पार्किंग माफियाओं को फायदा पहुंचा कर तो कभी निजी कंपनियों के साथ भागीदारी कर अपना रेवेन्यू घटाती जा रही है.
उन्होंने कहा कि असल में ये बड़ी कंपनियां भारतीय जनता पार्टी के बड़े बड़े नेताओं की ही हैं जिन्हें फायदा पहुंचाया जाता है और ऐसे में निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह सही वक्त है कि दिल्ली की जनता एक बेहतर विकल्प चुनेगी.
दिल्ली सरकार ने भी कम दी बकाया राशि