नई दिल्ली: उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और दिल्ली सरकार में तकरार जारी है. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी के पत्र का जवाब देते हुए कहा है कि संविधान में आपकी ज़िम्मेदारी कानून व्यवस्था ठीक करना है. आप क़ानून व्यवस्था ठीक कीजिए और हमें शिक्षा व्यवस्था ठीक करने दीजिए. उन्होंने कहा कि एलजी ने कल एक पत्र में दिल्ली के शिक्षा विभाग पर कई झूठे आरोप लगाये थे. मैंने उनके पत्र का जवाब देते हुए अनुरोध किया है शिक्षकों के काम का मखौल न उड़ाएं. दिल्ली के शिक्षकों ने कमाल करके दिखाया है. सिसोदिया ने एलजी को दो पन्नो का एक पत्र भी भेजा है. इसकी जानकारी उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से दी है. सिसोदिया के ट्वीट पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के टीचर्स, स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स ने मिलकर पिछले 7 सालों में कड़ी मेहनत करके शिक्षा व्यवस्था को सुधारा है. एलजी साहिब को उनका अपमान करने की बजाय उनका हौसला बढ़ाना चाहिए
एलजी को सिसोदिया का पत्र:एलजी को लिखे पत्र में सिसोदिया ने कहा है कि शुक्रवार को एक पत्र मिला. जिसमें आपने दिल्ली के शिक्षा विभाग के कामकाज की आलोचना करते हुए जो आँकड़े दिए हैं, वो झूठ हैं. दिल्ली के 60 हजार शिक्षक, 18 लाख बच्चे और उनके 36 लाख पेरेंट्स, जिन्होंने अपनी मेहनत से दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया है, वे सभी आहत और अपमानित महसूस कर रहे हैं. आपको असत्य तथ्यों का सहारा लेकर इस तरह पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदनाम नहीं करना चाहिए था. जैसे आप ने एक बहुत ही गलत तथ्य लिखा है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या सोलह लाख से घटकर पंद्रह लाख रह गई है. जबकि हकीकत यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में वर्ष 2015-16 ( हमारी सरकार बनने के पहले वर्ष में ) छात्रों की संख्या 14 लाख 66 हजार थी जो अब बढ़कर 18 लाख हो चुकी है.
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2015 में सरकारी स्कूलों के हाल: उन्होंने कहा 2015 में सरकारी स्कूल के नाम पर केवल टूटे-फूटे कमरे हुआ करते थे जिनमें ऊपर से पानी टपकता था उनकी छत व दीवारें धूल और मकड़ी के जालों से लेटी रहती थी. स्कूलों में पीने का पानी और साफ सुथरा टॉयलेट होना तो दूर की बात थी, बिल्डिंग के किसी कोने में टूटा फूटा टॉयलेट होता था वहां इतनी बदबू आती थी की उधर से निकलना भी मुश्किल होता था. ऐसे माहौल में हमारी बच्चियां, बच्चे, महिला और पुरुष अध्यापक किस तरह नाक बंद करके 8 घंटे स्कूल में रहते होंगे आज आप इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते. हर इलाके में कई ऐसे स्कूल थे जो टेंट वाले स्कूल के नाम से मशहूर थे क्योंकि वहां क्लासरूम थे ही नहीं और बच्चों की पढ़ाई टेंट में होती थी. 2015 में जब मैं स्कूलों में जाता था तो लगभग हर स्कूल में यही नजारा देखता था और मेरा दिल रोता था.