नई दिल्ली: नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के 9 स्वरूपों की पूजा की जाएगी. देवी के हर स्वरूप का अपना अलग महत्व और मान्यताएं हैं. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी की षोडशोपचार पूजा करें और माता को गाय का घी अर्पण करें. मान्यता है कि माता की पूजा में गाय का घी चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और विशेष रूप से आरोग्य लाभ होता है.
शारदीय नवरात्रि तिथि:पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर 2022 से (Shardiya Navratri 2022) प्रारंभ होकर 4 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी. 26 सितंबर को कलश स्थपाना (method and mantra of Kalash Sthapna) के साथ ही मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होगी. 27 सितंबर को मां के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी, 28 सितंबर को मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा, 29 सितंबर को मां के चौथे स्वरूप कुष्मांडा, 30 सितंबर को मां के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता, 1 अक्टूबर को मां के छठवें स्वरूप कात्यायनी, 2 अक्टूबर को मां के सातवें स्वरूप कालरात्रि, 3 अक्टूबर को मां के आठवें स्वरूप मां महागौरीऔर 4 अक्टूबर को मां के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्रीकी पूजा होगी.
शारदीय नवरात्रि पूजा विधि:सुबह उठकर स्नान करें. फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़क कर उसकी शुद्धि कर लें. घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें. मां दुर्गा का शुद्ध जल से अभिषेक करें. देवी को अक्षत, सिंदूर और लाल पुष्प अर्पित करें. फल और मिठाई का भोग लगाएं. दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आरती करें.
पूजा सामग्री की लिस्ट:माता की पूजा में लाल चुनरी, लाल वस्त्र, मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी या तेल, धूप, नारियल, अक्षत, कुमकुम, पुष्प, देवी की प्रतिमा/फोटो, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मिसरी, कपूर, फल और मिठाई, कलावा आदि चढ़ाएं.
कलश स्थापना मुहूर्त:
स्थापना तिथि:26 सितंबर 2022, सोमवार
स्थापना मुहूर्त:26 सितंबर, 2022 प्रातः 06:28 मिनट से प्रातः 08: 01 मिनट तक
कुल अवधि 01 घण्टा 33 मिनट
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना पूजा विधि:नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त स्नान करें. इसके बाद मंदिर को साफ करें और भगवान गणेश का नाम लें. कलश को उत्तर अथवा उत्तर पूर्व दिशा में रखें. जहां कलश स्थापित करना हो उस स्थान को पहले गंगाजल छिड़कर पवित्र करें. इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक साथ बिछा लें. कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं. कलश के ऊपरी हिस्से में कलावा बांधें. कलश में जल भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. इसके बाद श्रद्धा के अनुसार सिक्का, दूर्वा, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें. कलश पर अशोक या आम के पांच पत्ते वाला पल्लव लगाएं. इसके बाद नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें और कलश के ऊपर रख दें. अब कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जा सकता है. कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जलाएं.
कलश स्थापना विधि और मंत्र:जिस स्थान पर कलश स्थापित कर रहे हैं, उस स्थान को दाएं हाथ से स्पर्श करते हुए बोलें-
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृग्वंग ह पृथिवीं मा हि ग्वंग सीः।।
कलश के नीचे सप्तधान बिछाने का मंत्र-
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
कलश स्थापित करने का मंत्र:जहां कलश रखना हो वहां यह मंत्र बोलते हुए कलश को स्थापित करें-
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः।