नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को रेस्तरां और होटल संघों को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि वे सेवा शुल्क के नाम पर ग्राहकों से अतिरिक्त वसूली न करें. साथ ही सेवा शुल्क शब्द की जगह कर्मचारी कल्याण कोष या कर्मचारी कल्याण योगदान शब्द का इस्तेमाल करने पर विचार करें, ताकि इस भ्रम से बचा जा सके कि यह सरकार द्वारा लगाया गया शुल्क है.
संघों को बैठक करने के आदेश:न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने संघों से कहा कि वे एक बैठक आयोजित कर कोर्ट को सूचित करें कि उसके कितने प्रतिशत सदस्य ग्राहकों को यह सूचित करने के लिए तैयार हैं कि सेवा शुल्क जरूरी नहीं है और वो अपनी इच्छा से योगदान कर सकते हैं. कोर्ट ने होटल व रेस्तरां संघों को यह भी आदेश दिया कि वे सेवा शुल्क लगाने वाले होटल और रेस्तरां के प्रतिशत के बारे में भी सूचित करें.
सुनवाई की अगली तारीख तक हलफनामा करें दायर:जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने आगे कहा कि कोर्ट के अंतरिम आदेशों में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशों पर रोक लगाई गई है कि होटल या रेस्तरां को सर्विस चार्ज अपने आप नहीं जोड़ना चाहिए. इसे HC द्वारा सर्विस चार्ज की मंजूरी के रूप में भी नहीं दिखाया जाना चाहिए. जज ने एसोसिएशनों से 24 जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख तक हलफनामा दायर करने की बात कही है. कोर्ट ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.
2022 को सीसीपीए के निर्देशों को दी गई थी चुनौती:इन एसोसिएशनों ने चार जुलाई 2022 को जारी सीसीपीए के दिशा-निर्देशों को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश के माध्यम से पहले इन निर्देशों पर रोक लगा दी थी. आज सीसीपीए की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने तर्क दिया कि विभिन्न रेस्तरां ने अब कोर्ट के अंतरिम आदेश की गलत व्याख्या करना आरंभ कर दिया. होटल संघों में से एक की ओर से पेश अधिवक्ता ललित भसीन ने कहा कि सेवा शुल्क लगाए जाने का पहलू 80 वर्षों से जारी है और विभिन्न निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त है.
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