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रेलिगेयर कंपनी के पूर्व सीएमडी सुनील गोधवानी को दो दिनों में सरेंडर करने का आदेश

साकेत कोर्ट ने जमानत पर चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग के मामले के आरोपी रेलिगेयर कंपनी के पूर्व सीएमडी सुनील गोधवानी को दो दिनों के अंदर तिहाड़ जेल में सरेंडर करने का आदेश दिया है.

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साकेत कोर्ट

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Published : Dec 5, 2020, 7:32 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली की साकेत कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले के आरोपी रेलिगेयर कंपनी के पूर्व सीएमडी सुनील गोधवानी को दो दिनों के अंदर तिहाड़ जेल में सरेंडर करने का आदेश दिया. एडिशनल सेशंस जज संदीप यादव ने कहा कि अगर वे सरेंडर नहीं करेंगे, तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा. गोधवानी पिछले 25 सितंबर से अंतरिम जमानत पर हैं.

नील गोधवानी को दो दिनों में सरेंडर करने का आदेश

गिरफ्तारी वारंट जारी करने की मांग की थी

ईडी ने याचिका दायर कर गोधवानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने की मांग की थी. गोधवानी को 12 नवंबर को ही सरेंडर करना था, लेकिन उसने सरेंडर नहीं किया था. पिछले 25 सितंबर को साकेत कोर्ट ने गोधवानी को उसके ससुर की मौत होने पर तीन हफ्ते की अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. ये अंतरिम जमानत 15 अक्टूबर को दो हफ्ते के लिए और बढ़ा दिया गया. उसके बाद गोधवानी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें अंतरिम जमानत पर रिहा विचाराधीन कैदियों को 2 नवंबर से 13 नवंबर के बीच सरेंडर करना था.

12 नवंबर तक सरेंडर करना था

कोर्ट ने गोधवानी को 12 नवंबर को सरेंडर करने का आदेश दिया था, लेकिन गोधवानी ने 12 नवंबर तक भी सरेंडर नहीं किया. जिसके बाद ईडी ने साकेत कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. गोधवानी की ओर से पेश वकील रजत कात्याल ने ईडी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कैदियों के सरेंडर करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 26 नवंबर को नोटिस जारी किया था. इसलिए उसकी अंतरिम जमानत भी अपने आप बढ़ गई है.

2300 करोड़ की हेराफेरी का आरोप

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 2019 में मलविंदर सिंह, शिवेंद्र सिंह, सुनील गोधवानी, कवि अरोड़ा और अनिल सक्सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था. इन आरोपियों को 10 अक्टूबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था. आरोप है कि रेलिगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड (आरईएल) के साथ धोखाधड़ी की गई. रेलिगेयर कंपनी में रहते हुए मलविंदर सिंह और शिवेंद्र सिंह ने बैंकों से 2300 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और उस पैसे को गलत तरीके से अपनी सहायक कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया और बैंक का कर्ज जानबूझकर नहीं चुकाया. जब कंपनी आरएफएल की हो गई, तब पूरे घोटाले का खुलासा हुआ.

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