नई दिल्ली: साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित किए गए ‘पुस्तकायन’ पुस्तक मेले (Sahitya Akademi Book Fair) के सातवें दिन ‘अपने प्रिय लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में प्रख्यात अंग्रेज़ी लेखिका पारो आनंद ने बच्चों से बातचीत की और अपनी रचनाएं भी सुनाई. बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए बताया कि उन्होंने लिखना कक्षा सात में सीखा जब उन्होंने झूठ-झूठ में घर में एक बंदर होने की बात अपनी कक्षा में बताई. इसके चलते उन्हें कल्पना के सहारे बहुत सारे रोचक झूठ बोलने पड़े और उन्हें पहली बार लगा कि इस तरह लिखकर वे बच्चों का मनोरंजन कर सकती हैं. उन्होंने एक बात स्पष्ट की कि झूठ बोलना आगे चलकर हमेशा परेशान करता है और एक झूठ को छिपाने के लिए अनेक झूठ बोलने पड़ते हैं, जोकि उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए लिखना खाना बनाने जैसा है, जहां हमें कभी कल्पनाओं की आग तेज करनी होती है तो कभी धीमी, कभी कहानी को मजे़दार बनाने के लिए कई मसाले डालने पड़ते हैं. कोई भी पात्र पाठकोें को तभी पसंद आता है जब पूरी ईमानदारी से उसकी रचना की जाए और ऐसा तभी संभव है जब कोई भी लेखक अपने खोल से निकलकर उस पात्र के शरीर को ओढ़ लेता है. उन्होंने कंगारू रू-रू की कहानी बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत की, जिसका बच्चों ने भरपूर आनंद लिया.
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प्रकाशन के मामले में रखी बात : चर्चा एवं रचना-पाठ के अंतर्गत ‘बाल साहित्य प्रकाशन के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर प्रभात कुमार की अध्यक्षता में विचार-विमर्श हुआ, जिसमें बाल लेखक और प्रकाशक बलराम अग्रवाल, चंदना दत्ता, एम. कृष्णा कुमारी, पंकज चतुर्वेदी एवं सुशील शुक्ल ने अपनेे-अपने विचार साझा किए. बलराम अग्रवाल ने बाल साहित्य लेखकों को बदलते समय के अनुसार स्वयं को अद्यतन रखने की जरूरत पर जोर दिया. चंदना दत्ता ने कहा कि बाल साहित्य को प्रकाशन की स्थिति इतनी निराशाजनक नहीं है, लेकिन फिर भी बच्चों की रुचियों के अनुसार बाल साहित्य को सुरुचिपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है. तेलुगु की बाल लेखिका मंजुळुरि कृष्णा कुमारी ने कहा कि बच्चों का साहित्य प्रकाशित तो हो रहा है लेकिन वह शहरी स्कूलों तक ही सीमित है. अतः उसके समान वितरण की व्यवस्था करना भी प्रकाशकों का कर्त्तव्य है. पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि हमारे बाल साहित्य में अभी भी पुराने मुहावरे ही चल रहे हैं, जबकि हमें उसके जरिए बच्चों को लोकतंत्र और अन्य न्यायप्रणालियों के बारे में जागरूक करने की भी आवश्यकता है. उन्होंने अच्छे बाल साहित्य के लिए अच्छे बाल संपादकों की ज़रूरत पर बल दिया. सुशील शुक्ल ने कहा कि बाल लेखकों को भाषा के नए-नए मुहावरे गढ़कर कथन को सरल और उदार बनाना होगा. उन्होंने बच्चों को बहुत ज्यादा फुसलाने की भाषा प्रयुक्त करने पर भी एतराज जताया. अंत में, सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रभात कुमार ने कहा कि बाल साहित्य प्रकाशन के समक्ष चुनौतियाँ तो बहुत हैं लेकिन हमें चुनौतियों से ही नई राहें निकालनी होंगी. ऐसा बाल साहित्य में नवाचार के साथ ही हो पाएगा.
ये कार्यक्रम भी हुए :‘आजादी के रंग बाल कलाकारों के संग’ शीर्षक से आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला जो सीसीआरटी के सहयोग से आयोजित की जा रही है, इसमें प्रियंका छाबड़ा और वृति गुजराल ने कथक नृत्य और अंजली पोलाइट ने ओड़िसी नृत्य पेश किए. इसके अलावा अभिरूप ठाकुर ने बांसुरी वादन प्रस्तुत किया. ज्ञात हो कि 11 नवंबर से प्रारंभ हुए इस पुस्तक मेले का शुक्रवार अंतिम दिन है.
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