नई दिल्ली:दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में महज कुछ दिलों का वक्त रह गया है. तारीखों का ऐलान बेशक नहीं हुआ है, लेकिन तमाम दल इसके लिए तैयारियों में पहले ही जुट गए हैं. इसी बीच दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले ने दलों के बीच भूचाल ला दिया है. कोर्ट ने दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशक से उस नियम 14 का पालन करने के लिए कहा है, जिसका संशोधन साल 2010 में हुआ था. इसी के बाद तमाम दिग्गज पार्टियों के राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
क्या है नियम 14!
दिल्ली सिख गुरुद्वारा एक्ट 1971 के संशोधित नियम 14 के मुताबिक कोई भी राजनीतिक दल गुरुद्वारा कमेटी का चुनाव नहीं लड़ सकता. इसके लिए धार्मिक दल होना जरूरी है. साथ ही इस दल का आम चुनावों से कम से कम 1 साल पहले दिल्ली सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड होना भी अनिवार्य है. नियम 14 में दल के सदस्यों को लेकर भी कई बिंदु है जिसमें दल के 5 सदस्यों का पिछला चुनाव लड़ना अनिवार्य है जबकि 2 सदस्य दो होंगे जो पहले कमेटी के मेंबर रहे हों.
क्यों मचा है बवाल!
दरअसल साल 2014 और 2017 के चुनावों में नियम 14 की अनदेखी हुई थी. आरोप है कि इन चुनावों में उन पार्टियों को भी चुनाव लड़ने की इजाजत दी गई जो असल में राजनीतिक पार्टियां हैं और दिल्ली सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड नहीं है. इसी आरोप के साथ आम अकाली दल ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से इस संबंध में जवाब मांगा जिसमें दिल्ली सरकार ने यह दलील दी कि पुरानी निवाई की पार्टियों पर यह नियम लागू नहीं किया गया था. हालांकि इसी बीच दिल्ली सरकार में गुरुद्वारा चुनाव मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने चुनाव निदेशक को लिखे पत्र में इस नियम को सख्ती से लागू करने के लिए कहा.
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इस संबंध में कोई फैसला होता कि शिरोमणि अकाली दल दिल्ली और शिरोमणि अकाली दल बादल ने कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अर्जी दी. हालांकि यहां पर कोर्ट ने यह साफ किया कि जो नियम है उसका पालन जरूर होगा. अब चुनाव निदेशक को इस संबंध में फैसला लेने के लिए कहा गया है साथ ही यह भी कहा गया है कि नियम 14 का पालन किया जाना चाहिए.