नई दिल्ली:भारत जैसे देश में गुरुओं को हमेशा से विशेष स्थान दिया गया है. यहां तक कि उन्हें भगवान और माता-पिता से भी ऊपर का स्थान दिया गया है. ऐसे में शिक्षक दिवस भारत देश में कोई आम दिन नहीं रह जाता. देशभर में शिक्षकों और गुरुओं के प्रति अगाध आस्था है. जिसके चलते उनको बहुत सम्मान दिया जाता है और शिक्षक दिवस भारत में विशेष महत्व का दिन बन जाता है. यही वजह है कि शिक्षक दिवस पर भारत के हर छोटे-बड़े स्कूल, कोचिंग सेंटर, कॉलेज आदि के छात्र इस दिन को विशेष बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी अपने गुरुओं, शिक्षकों तथा मार्गदर्शकों को याद करते हैं.
तकनीक के दौर ने आज हर चीज को बदल दिया है. आजकल शिष्य अपने गुरुओं को सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षक दिवस की शुभकामनायें देते हैं. 'ETV भारत' ने कुछ सेवा निवृत शिक्षकों से जानने की कोशिश कि अब उनके पुराने शिष्य किस तरह शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देते हैं ? उनको कितने शिष्यों के मैसेज और कॉल आते हैं? या जब वह शिष्य थे, तो किस तरह से शिक्षक दिवस मानते थे? आइये जानते हैं उन्होंने क्या बताया?
टीचर्स डे विश करने का तरीका बदला:2020 में एक प्राइवेट स्कूल से रिटायर हुई सुधा भारद्वाज ने बताया कि आज भी उनके पुराने स्टूडेंट्स उनको उतने ही उत्साह से टीचर्स डे विश करते हैं, जैसा वो पहले किया करते थे. लेकिन अब टीचर्स डे विश करने के तरीके बदल गए हैं. आजकल बच्चे फेसबुक और फ़ोन कॉल पर शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देते हैं. उन्होंने बताया कि ये दिन बच्चों और टीचर्स के लिए बहुत खास होता है. उनके पुराने स्टूडेंट्स उनको शिक्षक दिवस पर छोटे छोटे सन्देश भेजते हैं. वहीं सुधा ने अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए बताया कि जब वह शिष्या थीं. तो स्कूलों में शिक्षक दिवस के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था.
अपने स्कूल के दिनों को किया याद:वहीं 2004 में दिल्ली के सरकारी स्कूल से प्रधानचार्य के पद से रिटायर हुए बलदेव राज भाटिया ने बताया कि जब वह रिटायर हुए थे, उस समय सोशल मीडिया और मोबाइल का शुरूआती दौर था. लेकिन आज भी उनका कोई शिष्य मिलता है, तो अभिनन्दन करते हैं. फोन नम्बरों का आदान प्रदान होता है. इसके बाद पूर्व छात्रों ने कई बार शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं दी हैं. वर्तमान में उनके बहुत ही काम शिष्य हैं, जो टीचर्स डे विश करते हैं. अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए राज ने बताया कि उस समय शिक्षकों का काफी सम्मान किया जाता था. रोज़ सुबह स्कूल पहुंच कर छात्र अपने शिक्षक के पैर छुआ करते थे और आशीर्वाद लिया करते थे. इसके अलावा शिक्षक दिवस के दिन स्कूल में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे. टीचर्स को सम्मानित किया जाता था.
शिक्षक दिवस मनाने के पीछे की कहानी:5 सितंबर 1888 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. भारत रत्न डॉ. राधाकृष्णन स्वयं एक महान शिक्षक थे. एक बार जब शिष्यों ने मिलकर उनका जन्मदिन मनाने का सोचा. तो राधाकृष्णन ने कहा कि ‘मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाय अगर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा, तो मुझे गर्व होगा. भारत में पहली बार शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था.
शिक्षक दिवस का महत्व:डॉ. राधाकृष्णनन ने अपने जीवन के 40 अहम साल एक शिक्षक के रूप में देश को दिए थे. उन्होंने हमेशा शिक्षकों के सम्मान पर जोर दिया. उनका कहना था कि एक सच्चा शिक्षक समाज को सही दिशा देने का काम करता है. व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना सिखाता है. शिष्य का जीवन संवारने में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है. ऐसे में शिक्षकों की अनदेखी ठीक नहीं.