नई दिल्ली: संसद के दोनों सदनों से पास दिल्ली सर्विस बिल पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर करते ही ब्यूरोक्रेसी एलजी के अधीन हो गई है. दिल्ली का राजकाज चलाने के लिए नया कानून बन गया है. इसका दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने स्वागत किया है. आम आदमी पार्टी या कांग्रेस की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
दिल्ली सरकार के प्रशासनिक फैसलों में बदलाव
दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहलग बताते हैं कि इस कानून के बनने के बाद दिल्ली सरकार में प्रशासनिक फैसलों को लेकर बड़ा बदलाव नजर आएगा. दिल्ली की चुनी हुई सरकार को फैसला लेने का अधिकार तो होगा, लेकिन उस पर अंतिम मंजूरी उपराज्यपाल की होगी. अधिकारियों के तबादले से लेकर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई पर नए कानून के मुताबिक सिविल सर्विसेज प्राधिकरण फैसला करेगा. वहीं, अब विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भी सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी.
नए कानून के अनुसार दिल्ली सरकार में अधिकारियों की तैनाती से लेकर तबादले और उन पर किसी भी तरह की सतर्कता जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई का फैसला इस कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज प्राधिकरण करेगा. तीन सदस्यों वाली इस समिति के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे. दो अन्य सदस्य मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह विभाग) होंगे. फैसला वोटिंग के आधार पर होगा. मुख्यमंत्री का मत अगर अधिकारियों से अलग होता है तो बहुमत के आधार पर अधिकारियों का फैसला ही मान्य होगा. इस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अपनी आपत्ति पहले ही दर्ज कर चुके हैं.
इस कानून के बन जाने से अब सरकार के मंत्री का कोई फैसला अगर सेक्रेटरी को नियमानुसार नहीं लगता है तो वह आपत्ति जताकर उसे बारे में मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल को अपनी रिपोर्ट भेज सकते हैं और फाइल को रोक सकते हैं. इस तरह नए कानून बन जाने के बाद दिल्ली विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भी अब उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. सरकार को अपने सभी फैसलों के लिए उपराज्यपाल से मंजूरी लेना अब अनिवार्य होगा.