नई दिल्ली:कोरोनाकाल में लोगों के जीने का तरीका बदला है. अगर बात बच्चों की करें तो अभी के समय बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल एक अहम हिस्सा बन चुका है. पढ़ाई से लेकर खेलकूद तक के लिए बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ऐसा देखने में आया है कि ज्यादा देर ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलने से बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है और बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई और गेम्स के दौरान बच्चों के माता-पिता को क्या कुछ सावधानी बरतनी चाहिए, उनका बच्चों के प्रति क्या व्यवहार होना चाहिए इसे लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग कोच कविता यादव से बातचीत की.
'बोझ डालना गलत'
कविता यादव ने बताया कि जब महामारी शुरू हुई, पिछले साल मार्च 2020 में उसके बाद स्कूल और टीचर ने मिलकर स्थिति को एकदम संभाल लिया. उन्होंने स्थिति की नाजुकता को समझते हुए बच्चों का कोई नुकसान ना हो, यह सोचते समझते हुए बच्चों के स्कूल को ऑनलाइन मोड में ले आए. ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चे भी खुश हुए और उनके मां-बाप ने भी राहत की सांस ली कि उनके बच्चे व्यस्त हो गए हैं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि ऑनलाइन पढ़ाई का माध्यम इतना लंबा चलेगा.
आज हम जून 2021 में हैं. ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा तो है, स्ट्रक्चर है लेकिन अब हम यह समझने लगे हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों और मां-बाप के बीच कैसे स्ट्रगल बन गया है. अभी के समय बच्चों पर पैरंट्स के एक्सपेक्टेशन बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं और मां-बाप की उम्मीद को पूरा करने के लिए बच्चे एक कमरे में बैठकर मोबाइल स्क्रीन के सामने अपना दिन गुजार रहे हैं. यह मामला यहीं तक सीमित नहीं है. जब ऑनलाइन क्लासेज खत्म हो जाती हैं तो पेरेंट्स कहते हैं कि बच्चों होमवर्क कर लो, जो आज पढ़ा है उसका रिवीजन कर लो.
'खेल भी जरूरी'
कविता यादव ने बताया कि बच्चों को समझ नहीं आता कि ऐसे में आखिर बच्चे क्या करें. फिर ऐसे में शुरू होता है बच्चे और अभिभावक के बीच स्ट्रगल. हमें यह समझना होगा कि पहले जब बच्चे स्कूल जाते थे तो पढ़ाई के अलावा जब स्पोर्ट्स पीरियड होता था तो बच्चे नीचे ग्राउंड में खेलने जाते थे. वहां उन्हें खेलने कूदने की छूट होती थी.उ नकी एनर्जी चैनेलाइज होती थी. इसके अलावा बच्चे स्कूल में म्यूजिक गेम्स आदि सीखते थे लेकिन अभी यह सब बच्चो को स्क्रीन पर बैठकर करना पड़ता है.
'बच्चों को भी आराम की जरूरत'