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दिल्ली में केवल पराली की वजह से नहीं होता प्रदूषण, जानिए नवंबर में क्यों बढ़ता है स्तर

दिल्ली सरकार लगातार कहती है कि पराली की वजह से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, लेकिन ऐसा नहीं है. जानिए नवंबर में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के क्या कारण हैं.

जानिए नवंबर में क्यों बढ़ता है स्तर
जानिए नवंबर में क्यों बढ़ता है स्तर

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Published : Oct 22, 2021, 4:26 PM IST

नई दिल्ली:नवंबर का महीना आते ही राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है. बीते सालों में ऐसे कई मौके आए हैं जबकि इस महीने में और इसके बाद दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया हो. इस साल प्रदूषण को रोकने के लिए दिल्ली सरकार तमाम कदम उठा रही है.

साथ ही दिल्ली सरकार यह भी कह रही है ये प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पराली है और पराली पंजाब हरियाणा और आस पास के अन्य राज्यों में जलाई जा रही है, जिसके चलते ये स्तर बढ़ रहा है, लेकिन क्या वाकई पराली ही दिल्ली में प्रदूषण का एकमात्र कारण है ? अगर आपके मन में भी यही सवाल है तो आइए हम आपको बताते हैं.

द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्टडी कहती है कि राजधानी दिल्ली में साल भर के प्रदूषण में सबसे अधिक 30 फीसदी प्रदूषण इंडस्ट्री और फिर 28 फीसदी वाहनों से होता है. इसमें भी पराली जलाने के सीजन में पराली की 40 फीसदी तो वाहनों की 18 फीसदी हिस्सेदारी हो जाती है यानी साफ है कि पराली और वाहनों का प्रदूषण ही दिल्ली में प्रदूषण के कारक नहीं हैं.

जानिए नवंबर में क्यों बढ़ता है प्रदूषण का स्तर

इसका सीधा मतलब ये भी है कि अगर अन्य कारकों पर काम कर लिया जाए तो दिल्ली का करीब आधा प्रदूषण कम किया जा सकता है. हालांकि, वो कौन से कारण हैं जिनके चलते नवंबर महीने में दिल्ली में प्रदूषण होता है यह जानना भी जरूरी है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक विवेक चट्टोपाध्याय कहते हैं कि नवंबर महीने में राजधानी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के पीछे मौसम बहुत हद तक जिम्मेदार होता है. इन दिनों में एक तरफ जहां हवा की दिशा बदलती है तो वहीं दूसरी ओर तापमान में गिरावट होना शुरू हो जाती है. दिल्ली की भौगोलिक स्थिति को समझें तो यहां उत्तर से चलने वाली हवाओं को ब्लॉक झेलना पड़ता है. फिर ये हवाएं भी बहुत तेज नहीं होती.

इसलिए प्रदूषण के कारण दिल्ली में आते हैं और फिर दिल्ली में ही रह जाते हैं. वे कहते हैं कि इस दौरान न तो वर्टिकल और ना ही हो हॉरिजॉन्टल डिस्पर्जन हो पाता है. ऐसे में बाहर से आने वाले प्रदूषण के साथ दिल्ली का प्रदूषण मिलता है और लोगों की परेशानी बनता है.

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एक और फैक्टर इसमें ईंधन जलाना भी है. आमतौर पर लोग इसे नजरंदाज करते हैं, लेकिन इस महीने में अलग-अलग तरीके की ईंधन जलने की घटनाएं बढ़ती हैं. आग जलाने से निकलने वाली गैस जहरीली होती हैं और हवा की गुणवत्ता खराब करती हैं. लिहाजा, ये नवंबर महीने में प्रदूषण का एक बड़ा बड़ा कारण बनती है. जैसे जैसे सर्दी नजदीक आती है ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी होती है और नतीजतन दिल्ली की हवा खराब होती जाती है.

विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं कि जब जब धूल नैचुरल पैटर्न से आती है तब उसमें छोटे पार्टिकल्स यानी PM2.5 होते हैं और जब गाड़ियों के चलने या कंस्ट्रक्शन साइट पर धूल उड़ती है तब वो बड़े पार्टिकल होते हैं यानी PM10. कन्स्ट्रक्शन साइट पर उड़ रही धूल हो या वाहनों से उड़ने वाली धूल, दोनों ही मामलों में प्रदूषण बढ़ता है. इससे अलग, इंडस्ट्री और गाड़ियों की बढ़ती संख्या और तय मानकों का ध्यान नहीं रखना भी प्रदूषण का कारण बनता है.

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हाल ही में शुरू किए गए दिल्ली सरकार के रेड लाइट और गाड़ी ऑफ अभियान से दिल्ली में 20 फीसदी तक प्रदूषण कम होने का दावा किया गया है. यानी जाहिर है कि गाड़ियां दिल्ली में 20 फीसदी से ज्यादा ही प्रदूषण फैलाती हैं. मौजूदा समय में दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब श्रेणी में पहुंच गया है.

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पिछले दिनों बारिश से इसमें थोड़ी राहत थी, लेकिन अब फिर स्थिति खराब हो रही है. दिल्ली में सरकार प्रदूषण को रोकने के लिए तमाम अभियान चला रही है इसमें पराली के लिए बायोडी कंपोजर घोल का इस्तेमाल, एंटी डस्ट कैंपेन और हाल ही में शुरू की गई रेड लाइट और गाड़ी ऑफ कैंपेन शामिल हैं. उधर गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के लिए पुरानी गाड़ियों पर रोक लगाई गई है तो प्रदूषण सर्टिफिकेट को लेकर सख्ती शुरू हो गई है. मौजूदा समय में प्रदूषण खराब श्रेणी में ही है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके खतरनाक होने की आशंका भी बनी हुई है.

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