नई दिल्ली:बीते कई दशकों से दिल्ली का महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा रहीं अनाधिकृत कॉलोनियां इस बार मुद्दा तो हैं, लेकिन अलग रूप में. बीते कई विधानसभा चुनावों में इनका इस्तेमाल, इनमें रहने वाले लोगों को उनके घरों का मालिकाना हक दिलाने के सपने से जुड़ा रहा. लेकिन इस बार वह इस सपने को जमीनी हकीकत बनाते दिखाने की सियासी होड़ में बदल चुका है.
केंद्र सरकार की तरफ से जब अनाधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने का फैसला हुआ, तो भाजपा के साथ-साथ आम आदमी पार्टी भी इसके श्रेय के लिए जमीन पर उतर गई. हालांकि इस श्रेय की सियासत लंबी नहीं चली और जैसे ही खबर आई कि केंद्र सरकार एक वेबसाइट के जरिए पहले लोगों को नंबर देकर रजिस्ट्री प्रक्रिया शुरू करने वाली है.
आम आदमी पार्टी ने हमला बोलने में तनिक भी देरी नहीं की. पार्टी ने केंद्र सरकार के इस फैसले को शीला दीक्षित सरकार की तरह प्रोविजनल सर्टिफिकेट बांटने जैसे कदम से जोड़ दिया.
आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर हमला करने का एक और मौका तब मिला, जब इसे लेकर संसद में बिल लाने का वादा कर चुकी भाजपा उन 27 बिलों की सूची में अनाधिकृत कॉलोनी को शामिल नहीं करा सकी, जिन्हें इस बार संसद में पेश किया जाना है. आम आदमी पार्टी के 3 राज्य सभा सांसद और एक लोकसभा सांसद ने इस मुद्दे पर संसद परिसर के भीतर महात्मा गांधी की प्रतिमा पर प्रदर्शन भी किया.
श्रेय लेने की होड़
प्रदर्शन का असर कहें या कुछ और, केंद्रीय कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण बैठक में अनाधिकृत कॉलोनियों से जुड़े बिल को मंजूरी दे दी. इस पर भी आम आदमी पार्टी ने अपनी पीठ थपथपाई और कहा कि उसके दबाव के बाद यह बिल पेश लाया गया है.