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कांग्रेस के सीनियर लीडर और थिंक टैंक मोतीलाल वोरा ने खेली लंबी सियासी पारी, पाई-पाई का भी रखते थे हिसाब - Property of National Herald News Paper

कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा का 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने एक लंबी सियासी पारी खेली. वे लगातार कांग्रेस पार्टी में एक्टिव रहे. वे पार्टी की पाई-पाई का हिसाब रखते थे. और फिजूल खर्च नहीं होने देते थे. मोतीलाल वोरा के निधन से कांग्रेस को गहरा झटका लगा है.

Political journey of senior Congress leader Motilal Vora
कांग्रेस के सीनियर लीडर और थिंक टैंक मोतीलाल वोरा ने खेली लंबी सियासी पारी, पाई-पाई का भी रखते थे हिसाब

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Published : Dec 21, 2020, 9:24 PM IST

नई दिल्ली/रायपुर:कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा का 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने एक लंबी सियासी पारी खेली. वे लगातार पार्टी में एक्टिव रहे. कांग्रेस पार्टी में 2 दशक तक कोषाध्यक्ष रहने के साथ ही उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियां निभाई. उन्हें लोग प्यार से उन्हें दद्दू भी बुलाते थे. यह भी मशहूर था कि बतौर कोषाध्यक्ष वे पार्टी की पाई-पाई का हिसाब रखते थे और फिजूल खर्च नहीं होने देते थे.

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अहमद पटेल के बाद दूसरा झटका

मोतीलाल वोरा ने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के संगठन में काम किया. वह गांधी परिवार के वफादार माने जाते थे. 26 जनवरी हो या पार्टी का कोई और कार्यक्रम, मोतीलाल वोरा हमेशा सोनिया गांधी के दाएं बाएं नजर आते थे. उन्होंने अपने जीवन में एक लंबी सियासी पारी खेली है. वो गांधी परिवार में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही नहीं बल्कि नरसिम्हा राव के भी करीबी माने जाते थे.

नेशनल हेराल्ड केस के कारण विवादों में रहे

नेशनल हेराल्ड न्यूज पेपर की संपत्ति के विवाद में मोतीलाल वोरा विवादों में भी रहे. एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड, यंग इंडियन और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में शामिल तीनों संस्थाओं में वोरा को अहम स्थान मिला था. वे 22 मार्च 2002 को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बने थे. उन्होंने पहले भी ऑल इंडिया कांग्रेस कार्यसमिति के कोषाध्यक्ष के रूप में काम किया था. वे 12 फीसदी के शेयरधारक और युवा भारतीय निर्देशक भी थे.

पत्रकारिता से सियासत में आए

मोतीलाल वोरा पत्रकारिता से सियासत में आए थे. उन्होंने कई अखबारों में काम किया था. पत्रकारों के बीच वो काफी लोकप्रिय थे. उन्हें पत्रकारों के सवालों से बचना भी बखूबी आता था. कभी भी किसी विवाद में नहीं पड़े. खास बात यह रही कि वे हर दिन पार्टी दफ्तर में जरूर जाते थे. कई सालों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के बाद 1968 में राजनीति में एंट्री की. 1970 में मध्यप्रदेश विधानसभा से चुनाव जीता. राज्य सड़क परिवहन निगम के उपाध्यक्ष बने. 1977 और 1980 में दोबारा विधानसभा में चुने गए. 1980 में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली. 1983 में कैबिनेट मंत्री बने और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने.

मध्यप्रदेश के मंत्री से मुख्यमंत्री तक का सफर

मोतीलाल वोरा 13 मार्च 1985 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 13 फरवरी 1988 तक करीब 3 साल मुख्यमंत्री रहे. 14 फरवरी 1988 में केंद्र के स्वास्थ्य परिवार कल्याण और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला. अप्रैल 1988 में वोरा राज्यसभा के लिए चुने गए. जनवरी 1989 से दिसंबर 1989 तक रहे दूसरी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 26 मई 1993 से 3 मई 1996 तक उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहे. उनके राज्यपाल रहते हुए 1995 में यूपी गेस्टहाउस कांड हुआ था. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने राजभवन में धरना दिया था और सपा सरकार को भंग करने की मांग की थी.

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