नई दिल्ली: पटियाला हाउस कोर्ट ने कश्मीर के फ्रीलांस फोटो जर्नलिस्ट मोहम्मद मनन डार (Kashmiri photojournalist Mohammad Manan Dar) को यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के मामले में जमानत दे दी है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उसके खिलाफ एनआईए द्वारा लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत नहीं हो रहे हैं.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शैलेंद्र मलिक ने कहा कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन की गुप्त रूप से सहायता करने के आरोप के समर्थन में एनआईए ने आरोप लगाया कि फोटो जर्नलिस्ट ने अपने पैसे की आड़ में सुरक्षाबलों और उनकी तैनाती की तस्वीरें आतंकी संगठनों से साझा की है. मोबाइल फोन के डाटा विश्लेषण से पता चलता है कि टेलीग्राम मैसेज और इमेज भेजी गई है, लेकिन यहां पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें मोहम्मद मनन ने ही भेजा है.
अदालत ने कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि डार ने किसी भी समय किसी व्यक्ति या संगठन के साथ सुरक्षा बलों या तैनाती की कोई इमेज या फोटोग्राफ साझा किया था. अदालत ने आगे कहा कि हालांकि वह इस स्तर पर सबूतों की विस्तृत जांच नहीं हो सकती, मगर "यह कहना पर्याप्त होगा कि कोई भी साक्ष्य या गवाहों के बयान किसी भी तरीके से किसी 'आतंकवादी गतिविधि' की ओर इशारा करते हैं, जैसा अधिनियम की धारा 15 में परिभाषित किया गया है."
अदालत ने थावा फजल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया पर भरोसा करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए की धारा 15, 20, 38 और 39 के तहत अपराधों के अवयवों पर विस्तार से चर्चा की है और माना है कि उन धाराओं के तहत अपराध साबित करने के लिए आवश्यक बुनियादी सामग्री अधिनियम की धारा 15 के तहत परिभाषित किसी भी आतंकवादी कार्य या गतिविधि को करने के लिए किया गया कोई भी प्रत्यक्ष कार्य है. डार यूएपीए मामले में एक साल से अधिक समय से जेल में हैं. वे फ्रीलांस फोटो जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने कश्मीर की खबरों को कवर किया है.