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Education Policy 2020: नई शिक्षा नीति के तीन साल पूरे, क्या हुआ इससे बदलाव? जानें छात्र-प्रोफेसर की राय

देश में नई शिक्षा नीति को लागू हुए इस महीने तीन साल पूरे हो जाएंगे. क्या यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई है या इससे क्या-क्या बदला है? आइए जानते हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और प्रोफेसर की राय...

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Published : Jul 27, 2023, 7:02 AM IST

Updated : Jul 27, 2023, 10:19 AM IST

नई शिक्षा नीति के तीन साल पूरे

नई दिल्ली:राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू हुए इस साल तीन साल हो जाएंगे. इस नीति के तीन साल होने के उपलक्ष्य में भारत सरकार शिक्षा का समागम भी कर रही है. इस कार्यक्रम का आयोजन 28 जुलाई को किया जाएगा. आईटीपीओ में इसकी एक प्रदर्शनी लगाई जाएगी, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी का एक स्टॉल भी होगा. तीन साल हो चुके इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कैसे देखते हैं. इसको लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों से बात की.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति से संतुष्ट हैं छात्र
हिंदू कॉलेज के छात्र हरेश चौधरी ने बताया कि भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक बहुत अच्छा प्रयोग था. देश में 34 से 35 साल के बाद यह नई शिक्षा नीति लागू की गई. छात्र जो स्कूल या कॉलेज में भी पढ़ता था तो उसे भारत और भारतीयता का भाव नहीं आ पाता था. इस शिक्षा नीति के तहत स्कूल में पढ़ने वाले और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों में भारत और भारतीयता का भाव आ रहा है. अपनी मातृभाषा को पढ़ने और अपने वीर महापुरुष को पढ़ने का अवसर मिला है. पहली की शिक्षा नीति थेटोरोटिकल बेस पर थी, जिससे इस नई शिक्षा नीति ने प्रैक्टिकल बेस पर उतारा है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र प्रियांश चौहान ने कहा कि भारत सरकार के द्वारा जो यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई है. इसे तीन साल पूरे हो चुके हैं और इस नीति के आने के बाद कई बदलाव किए गए हैं. स्कूल के स्तर पर और विश्वविद्यालय के स्तर पर कई बदलाव आए हैं. हम जब अपने छोटे भाई बहनों को स्कूल में देखते हैं तो मैं पता हूं कि अब वातावरण में कई बदलाव हुए हैं उन्हें प्रैक्टिकल लाइफ का अनुभव मिल रहा है. इस नीति के आने के बाद से यूनिवर्सिटी में पाबंदी हट गई है. पहले की शिक्षा नीति में कई पाबंदी होती थी. आप यहां नहीं जा सकते, वहां जाने पर कारवाई होगी. इस शिक्षा नीति के आने के बाद से वह पाबंदी हटी है.

उन्होंने कहा कि स्कूलों में यह नीति लागू करना बेहद ही जरूरी था. क्योंकि, जब स्कूलों में पढ़ने वाले ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्र अपने मनपसंद के टॉपिक्स जो उसके भविष्य से जुड़ी हुई है, वह पढ़ सकता है. जिससे वह आगे चलकर पैसे कमा सकता है. उन्होंने कहा कि यह जो शिक्षा नीति आई है, यह बहुत ही शानदार है. तीन साल पूरे हो रहे हैं और इस नीति को आगे बढ़ाना चाहिए. खासतौर पर इस नीति को शिक्षा के सभी स्तर पर लागू करना चाहिए.

क्या कहते हैं प्रोफेसर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर आनंद प्रकाश ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 असंवैधानिक है, क्योंकि यह समानता के उस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, जिसका पालन राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है. यह नीति देश की 85-90 फीसदी वंचित आबादी के लिए स्कूल परिसर जैसे घटिया शैक्षिक प्रावधान, एकल शिक्षक विद्यालय, घर बैठे शिक्षा, दो स्तर के कोर्स और शिक्षा, डिजिटल ई-विद्या द्वारा एक-पक्षीय डिजिटल शिक्षा और मुक्त विद्यालय जैसे प्रावधान करती है जो समानता के संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ है.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भेदभाव से पीड़ित अनुसूचित जाति/जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/विकलांग और अन्य वंचित वर्गों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान का कोई उल्लेख नहीं है. इसमें कहीं भी सभी बच्चों के लिए या वंचित वर्गों के लिए ‘मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा’ के संवैधानिक जनादेश का उल्लेख नहीं है. यह नीति राष्ट्रीय प्रत्यायन(Accreditaion) प्रणाली से जुड़ी ग्रेडेड स्वायत्तता की अवधारणा के माध्यम से सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को नष्ट करती है.उ च्च शिक्षा की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था के कठोर होने की आलोचना करती है लेकिन इसमें प्रस्तावित ‘उच्च शिक्षा आयोग’ (HECI) उसके चार अंगों (NHERC, NAC, HEGC, GEC) की व्यवस्था के चलते उच्च शिक्षा के हर स्तर पर केंद्रीकरण बढ़ जाएगा.

उन्होंने कहा कि औपचारिक शिक्षा से बाहर निकलने के कई विकल्प देने के बहाने दरअसल यह नीति ‘ड्रापआउट’ या सही शब्दों में कहें तो तालीम से बेदखली को वैधता देती है। गौरतलब है कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों और महिलाओं के लिए औपचारिक शिक्षा में वापस लौटना काफी मुश्किल होगा. स्नातकोत्तर को 2 वर्ष से घटाकर एकवर्षीय बनाया जाएगा और एमफिल डिग्री को हटा दिया जाएगा. इससे विद्यार्थियों में गुणवत्तापूर्ण शोध की क्षमता प्रभावित होगी. साथ ही, विश्वविद्यालय के शिक्षकों के कार्यों में उतार-चढ़ाव आएगा. उच्च शिक्षा संस्थानों के अनुदान को NAC और आउटपुट की गुणवत्ता से जोड़ना यह दर्शाता है कि केवल कुछ बेहतर प्रदर्शन करनेवाले (कुलीन) संस्थानों को ही सरकारी फंडिंग मिल पाएगी, इसमें बहुतेरे संस्थान पीछे रह जाएंगे और सरकारी स्कूलों की भांति बंदी के कगार पर आ जाएंगे.

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Last Updated : Jul 27, 2023, 10:19 AM IST

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