नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Center for Arts) द्वारा प्रकाशित कुमाऊं की अनूठी रामलीला पर आधारित पुस्तक 'ओपेरामा कुमाऊंनी रामलीला' का लोकार्पण कला केंद्र के समवेत सभागार में किया गया. इंडियन ओशन बैंड से जुड़े रहे प्रसिद्ध गायक हिमांशु जोशी द्वारा संकलित और लिखित इस पुस्तक का लोकार्पण प्रसिद्ध लेखक और अध्यापक प्रो. पुष्पेश पंत, कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय, कला केंद्र के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, कला केंद्र के आदि दृश्य के विभागाध्यक्ष डॉ. रमाकर पंत और जनपद संपदा विभाग के अध्यक्ष डॉ. के अनिल कुमार ने किया. 10 दिनों तक चलने वाली कुमाऊंनी रामलीला की खासियत है कि यह संसार की सबसे लंबी ओपेरा प्रस्तुतियों में से एक है. यह उत्तराखंड की अनूठी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है.
पुस्तक का परिचय श्रोताओं को देते हुए डॉ. रमाकर पंत ने कहा कि 2007 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के जनपद संपदा विभाग द्वारा प्रादेशिक राम कथाओं की जीवंत परम्पराओं को डॉक्यूमेंट करने और उनके अध्ययन का विस्तृत कार्य शुरू किया गया था. इसके अंतर्गत 30 से अधिक जीवंत परम्पराओं को डॉक्यूमेंट किया गया. 'ओपेरामा कुमाऊंनी रामलीला' इस जीवंत शृंखला की पहली वृहत् परियोजना थी. उन्होंने कहा कि इसके प्रकाशन में 14 वर्ष का लंबा समय लग गया, लेकिन यह भी सत्य है कि इस तरह के कार्य कालजयी होते हैं और नूतन भी होते हैं. इस रामलीला में संगीत की मधुरता और भारतीय पारसी नाट्यशैलियों का सुंदर चित्रण है. कार्यक्रम की अध्यक्षता रामबहादुर राय ने की और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. के अनिल कुमार ने किया. अंत में हिमांशु जोशी ने भगवान राम की स्तुति 'श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं' और कुमाऊंनी रामलीला की कुछ रचनाएं गाकर सुनाईं और श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.
'रामचरितमानस' से प्रेरित है:डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि 14 वर्ष की अवधि के बाद इस पुस्तक को पूर्णता प्राप्त हुई, इस बात की बहुत खुशी है. किसी भी पुस्तक में शब्दों को साथ भाव भी समाहित होते हैं. यह पुस्तक हमारे भावों को स्पंदित कर पाए, इसलिए इसे पोथी के रूप में प्रस्तुत किया गया है. कुमाउंनी रामलीला गोस्वामी तुलसीदास की 'रामचरितमानस' से प्रेरित है. साथ ही यह उस क्षेत्र की संस्कृति का सुंदर रूप भी प्रस्तुत करती है. डॉ. जोशी ने युवाओं को यह भी संदेश दिया कि जब तक हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों से नहीं जुड़ेंगे, अपनी भावभूमि से नहीं जुड़ेंगे, तब तक कोई भी उन्नति, कोई भी प्रगति सार्थक नहीं होगी.