नई दिल्ली/गाजियाबाद:अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर हर साल 19 नवंबर को भारत समेत तकरीबन 80 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है. यह दिन खासकर पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है. इस खास दिन पर हम आपके लिए कुछ ऐसे पुरूषों की कहानियां लेकर आए हैंं, जिन्होंने तमाम उम्र अपने परिवार के लिए गुजारा, लेकिन आज वृद्धाश्रम में जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
अकेले जीने को हैं मजबूर:उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद अवस्थी गाजियाबाद की दुहाई स्थित वृद्ध आश्रम में रहते हैं. इनकी उम्र 74 साल है. राजेंद्र प्रसाद ने मुश्किल हालातों से लड़कर 12वीं तक की पढ़ाई की लेकिन अपने बेटों को पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया. छोटी सी नौकरी की कमाई से बच्चों की पढ़ाई पूरी करनी मुश्किल हुई तो प्रोविडेंट फंड तक निकाल लिया. इससे भी काम ना चला तो बैंकों से कर्ज लेकर कॉलेज की फीस जमा की. इतनी मशक्कत के बाद भी आज वह अपना बुढ़ापा एक अनाथआश्रम में गुजारने को मजबूर हैं.
परिवार का किया पिंडदान:राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई तक तो सब कुछ ठीक था. पढ़ने के बाद बेटों की नौकरी भी लग गई. नौकरी लगने के बाद पत्नी ने बेटे का रिश्ता अपनी रिश्तेदारी में तय कर दिया, जो कि राजेंद्र प्रसाद को नागवार गुजरा. उन्होंने अपने पत्नी और बेटों को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी. राजेंद्र प्रसाद इतने आहत हुई कि वह अपने बेटे की शादी में भी शामिल नहीं हुए. उनके बेटे पत्नी और बहू गुजरात शिफ्ट हो गए और उन्हें अकेला छोड़ गए.