नई दिल्ली:कोरोना महामारी के दौरान देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से बाकी सारी चीजों की तरह फैमिली प्लानिंग गोल पर भी काफी असर पड़ा है. डिस्पेंसरी और हॉस्पिटल्स बंद होने की वजह से फैमिली प्लानिंग के लिए की जाने वाली स्टरलाइजेशन प्रोग्राम भी बंद करने पड़े हैं.
लॉकडाउन के चलते फैमली प्लानिंग का इस साल का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ इतना ही नहीं देश भर की करोड़ों महिलाएं कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स तक आसान पहुंच नहीं हो पाने की वजह से अबॉर्शन से भी वंचित रहीं. नतीजतन इन सब का असर जनसंख्या वृद्धि पर पड़ा. दिसंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर जनवरी और फरवरी 2021 में बेबी बूम का अनुमान लगाया गया है.
लॉकडाउन में बेबी बूम का अनुमान
लॉकडाउन के समय दंपति एक दूसरे के साथ अधिकतम समय व्यतीत कर रहे थे, तो बेबी बूम पर इसका असर पड़ना निश्चित था. देश भर की सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं और अस्पतालों को कोविड केयर सेंटर्स में तब्दील कर दिया गया, जिसकी वजह से लोगों की रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज तक पहुंच नहीं हो पाई.
इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा से जुड़े सभी चाहे वो डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पैरामेडिकल स्टाफ और आंगनवाड़ी सेविका सभी को कोरोना ड्यूटी पर लगा दिया गया. निजी स्वास्थ्य सेवाएं लगभग बंद हो गई या तो निजी अस्पतालों को बंद कर दिया गया या उन्हें कोरोना सेंटर में तब्दील कर दिया गया.
कॉन्ट्रासेप्टिव के उपाय लोगों की पहुंच से दूर हो गए. पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बंद कर दिया गया था और साथ ही महिलाएं घर से बाहर निकलने से परहेज करने लगीं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से हर तरह की सर्जरी पर रोक लगा दी गई. जिसमें पुरुषों की नसबंदी और महिलाओं की नसबंदी भी शामिल है.
इसका मतलब यह हुआ कि महिलाएं पुरुष लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड से दूर हो गए. स्वास्थ्य केंद्रों की खुलने के बावजूद कोरोना संक्रमण के डर की वजह से महिलाएं स्वास्थ्य केंद्रों पर जाने से परहेज करने लगीं, जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें अपनी प्रेगनेंसी को जारी रखना पड़ा.
यूरोपीयन कंट्रीज में भी दिखा बेबी बूम
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से पुरुषों और महिलाओं को अधिक से अधिक क्वालिटी समय एक साथ बिताने का मौका मिला. ऊपर से कॉन्ट्रासेप्टिव के अधिक विकल्प उपलब्ध नहीं होने की वजह से फैमिली प्लानिंग सिस्टम गड़बड़ा गए.
कई देशों में इटली, सकंडीबिया और यूरोपीयन कंट्रीज में बेबी बूम देखा गया. इन देशों में आबादी कम है, इसीलिए बेबी बूम से वे काफी खुश हैं. क्योंकि उनके देश की आबादी जहां पहले कम थी वहां थोड़ी बढ़ गई.
अमेरिका में ओल्ड पॉपुलेशन सबसे ज्यादा कोरोना से प्रभावित हुई है. यहां जनसंख्या कम होने के बावजूद मृत्यु दर काफी अधिक है, लेकिन भारत में अधिक जनसंख्या होने के बावजूद मृत्यु दर बहुत कम है.
भारत में सबसे पहले अस्तित्व में आई फैमिली प्लानिंग
डॉ अजय गौतम ने बताया कि भारत पहला देश है, जहां सबसे पहले फैमिली प्लानिंग 1952 में अस्तित्व में आई. नेशनल हेल्थ प्लानिंग सिस्टम आंकड़ों के मुताबिक जनसंख्या को लेकर भारत स्टैबिलिटी की ओर आगे बढ़ रहा है.
2040 तक भारतीय आबादी को स्टैबल करने का लक्ष्य है, लेकिन मौजूदा समय में हर साल ढाई करोड़ बच्चे पैदा होते हैं. जो दुनिया का सबसे छोटा महादेश ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी के बराबर है.
जनसंख्या नियंत्रण के लिए भारत सरकार द्वारा पुरुष और महिला नसबंदी जो प्रोग्राम चलाए गए थे, लॉकडाउन का असर इस पर भी हुआ. अस्पताल खुलने के बाद भी लोग कोरोना इंफेक्शन के डर से बचने के लिए स्टरलाइजेशन के लिए नहीं पहुंच रहे हैं.
फैमिली प्लानिंग के लक्ष्य में 25 फीसदी कमी
डॉ अजय गौतम के मुताबिक भारत सरकार का फैमिली प्लानिंग के लिए वार्षिक लक्ष्य होता है, उसमें लॉकडाउन की वजह से 25 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. हालांकि कोई ज्यादा कमी नहीं है, लेकिन जहां तक फैमिली प्लानिंग को लेकर आशा वर्कर और आंगनवाड़ी सेविका काउंसलिंग करती थीं, उसमें 15 फीसदी की कमी दर्ज की गई, क्योंकि इन्हें भी कोरोना ड्यूटी में लगा दिया गया था.
जो भी व्यक्ति नसबंदी के लिए अस्पतालों में आते थे, सबसे पहले उन्हें कोरोना टेस्ट किया जाता था. इसमें दो दिन का वक्त लगता था. ऐसे में वहां उन्हें कोरोना इंफैक्शन का ज्यादा खतरा था. पहले जहां लोग स्वैच्छिक रूप से नसबंदी के लिए अस्पतालों में नहीं जाना चाहते थे, वहीं लॉकडाउन के बाद डॉक्टर खुद इसके लिए मना करने लगे.
डॉ अजय कहते हैं कि कोविड अब आ चुका है तो अब हमें इसके साथ जीना सीखना होगा. कल कोई और बीमारी आएगी उसके साथ भी हमें रहना होगा. अप्रैल 2021 तक फैमिली प्लानिंग के 80 फीसदी लक्ष्य पूरा करने का टारगेट रखा गया है, जिसे पूरा होने की उम्मीद है.