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दिल्ली: प्रकृति संवाद में राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने भरी हुंकार, कहा- पहाड़ों की अहमियत को समझना होगा

दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रकृति संवाद में राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि लोगों को प्रकृति की अहमियत को समझना होगा. पहाड़ आज टूट रहे हैं, आपदाएं आ रही हैं. पहाड़ नहीं होगा तो नदी नहीं होगी. नदी नहीं होगी तो मैदान में जीवन नहीं होगा. इको सेंसेटिव जोन हर नदी का बनना चाहिए.

प्रकृति संवाद में राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने भरी हुंकार,
प्रकृति संवाद में राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने भरी हुंकार,

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 30, 2023, 10:25 PM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने गुरुवार को रामलीला मैदान से प्रकृति संवाद में हुंकार भरी. उन्होंने कहा कि यह कोई एक दिवसीय आयोजन नहीं, बड़े आंदोलन की शुरुआत है. अभी प्रकृति की चिंता करने वाले लोगों की मुलाकात हुई है, आगे प्रकृति के संरक्षण की कार्ययोजना तैयार होगी. इसमें प्रकृति केंद्रित विकास के लिए नीतिगत दखल के साथ सत्ता के विकेंद्रीकरण तक पर काम करना पड़ेगा. इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत कथावाचक अजय भाई के संगीतमय प्रस्तुति से हुई. करीब एक घंटे तक उन्होंने संगीत के माध्यम से प्रकृति के हर अंग की अहमियत बताई.

गोविंदाचार्य ने कहा कि नए खड़े होने वाले आंदोलन में कई धाराएं होंगी. इसमें सही व गलत की पहचान इससे होगी कि कौन प्रकृति के पक्ष में खड़ा है और कौन इसके खिलाफ. जो पक्ष में है, वह सही है. जबकि, जो साथ नहीं है वह गलत है. आज का जुटान सही व गलत को मापने की झांकी है. इसके मूल में दो बातें हैं. पहली प्रकृति केंद्रित विकास का नीतिगत पहलू है और दूसरा सत्ता के विकेंद्रीकरण का. इसमें संवाद, सहमति व सहकार से आगे बढ़ना है.

गोविंदाचार्य ने कहा कि लोगों को प्रकृति की अहमियत को समझना होगा. पहाड़ आज टूट रहे हैं, आपदाएं आ रही हैं. पहाड़ नहीं होगा तो नदी नहीं होगी. नदी नहीं होगी तो मैदान में जीवन नहीं होगा. इको सेंसेटिव जोन हर नदी का बनना चाहिए.

गोविंदाचार्य के मुताबिक, अभी यहां से लौटकर जिला स्तर पर लोगों के बीच किसी एक संकट पर संवाद और सहमति बनाकर उसके समाधान की ओर बढ़ना है. जो लोग किसी दिक्कत में हैं, उनकी मदद करना है.

वहीं, पहाड़ों की अहमियत पर बात करते हुए मल्लिका भनोट ने कहा कि पहाड़ आज टूट रहे हैं. आपदाएं आ रही हैं. यह लोगों को समझना होगा कि पहाड़ नहीं होगा तो नदी नहीं होगी. नदी नहीं होगी तो मैदान में जीवन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इको सेंसेटिव जोन हर नदी का बनना चाहिए. यह नदी का मौलिक अधिकार है. विकास पहाड़ों को काटकर सड़क बनाने, नदी का अतिक्रमण कर बहुमंजिला इमारतें बनाने में नहीं है. इनको बचाकर इनके साथ विकास करने में है.

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