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दिल्ली की जामा मस्जिद में 366 साल पहले पढ़ी गई थी पहली बार नमाज, जानें इससे जुड़ी रोचक बातें

राजधानी में स्थित जामा मस्जिद केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि भारत की मशहूर जगहों में से एक है. रमजान का पाक महीना हो या आम दिन, यहां नमाज पढ़ने के लिए लोगों का आना-जाना लगा रहता है. जानिए जामा मस्जिद से जुड़ी रोचक बातें और किस्से.

Namaz was read for first time 366 years ago
Namaz was read for first time 366 years ago

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Published : Jul 25, 2023, 6:07 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 6:31 PM IST

नई दिल्ली:दिल्ली की जामा मस्जिद मुसलिम समुदाय के लोगों के लिए खास महत्व रखती है. यहां इस्लाम धर्मावलंबी रोज नमाज अदा करने आते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यहां पहली बार नमाज कब अदा की गई थी. दरअसल, 25 जुलाई 1657 को ईद-उल-जुहा के दिन यानी 366 वर्ष पूर्व जामा मस्जिद में पहली बार नमाज अदा की गई थी. सिर्फ महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के दिनों में यहां नमाज पर रोक लगी, जिसे बाद में स्थिति नियंत्रण होने पर हटा लिया गया था. आइए जानते हैं, दिल्ली की कुछ सबसे मशहूर जगहों में शामिल इस मस्जिद का इतिहास और खासियत.

जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली में है और यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है. इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1650 ई. में कराया था, जिसमें संगमरमर और लाल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था. यह मस्जिद अपने विशाल गुंबद और सुंदर कला शैली के लिए विख्यात है. यहां एक मशहूर मीनार भी है, जहां से आप दिल्ली का अद्भुत नजारा देख सकते हैं. यह दिल्ली का एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल माना जाता है.

जामा मस्जिद का असली नाम:बताया जाता है कि इस मस्जिद का असली नाम 'मस्जिद-ए- जहान्नुमा' है. अरबी भाषा में इसका मतलब 'दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद' होता है. यह नाम मस्जिद के विशाल आकार और भव्यता को दर्शाने के लिए रखा गया है. सामान्यत: इसे 'जामा मस्जिद' के नाम से जाना जाता है.

जामा मस्जिद की खास बातें

गुंबद और मीनार है खासियत:जामा मस्जिद में उच्च गुंबद और चार मीनारें हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं. गुंबद की ऊंचाई लगभग 40 मीटर है और यह दिल्ली के सभी गुंबदों में से ऊंची है. यहां मौजूद मिनारें इतनी ऊंची हैं कि आप वहां से पूरी दिल्ली को देख सकते हैं.

चारों तरफ बाजार:दिल्ली का धार्मिक केंद्र होने के साथ, यह इलाका बाजार के मामले में भी काफी मशहूर है. यहां साल भर खरीदारों का तांता लगा रहता है. मस्जिद के पास प्राचीन मीना बाजार, मटियामहल, कबाड़ी बाजार, दरीबा कलां, चांदनी चौक, चितली कबर, चावड़ी बाजार और दरियागंज है, जो अपनी खासियत के लिए दुनियाभर में मशहूर है.

रमजान में जामा मस्जिद में नमाज अदा करने का महत्व:दिल्ली के जामा मस्जिद में रमजान के महीने में अलविदा की नमाज का नजारा देखने लायक होता है. यहां देशभर से मुसलिम समुदाय के लोग आते हैं और अपने परिवार और दोस्तों से साथ इफ्तारी करते हैं. लोगों का मानना है कि रमजान के आखिरी जुमे की नमाज अदा करने से दुआएं कुबूल होती हैं और खुदा रोजेदारों पर रहमत की बारिश करता है. साथ ही लोगों में प्यार और भाईचारा बढ़ता है. जामा मस्जिद में अलविदा की नमाज अदा करने के लिए लाखों की संख्या में लोग आते हैं.

हजारों की संख्या में नमाज के लिए जुटते हैं लोग

प्रतिदिन पांच बार पढ़ी जाती है नमाज-

  1. सुबह फजर (Fajr) की नमाज, जो सूर्योदय के पहले होती है.
  2. दूसरी नमाज धुहा (Dhuhr) जो सूर्योदय के बाद होती है.
  3. तीसरी नमाज असर (Asr) यह दोपहर में होती है.
  4. चौथा नमाज मगरिब (Maghrib) यह सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है.
  5. पांचवीं नमाज ईशा (Isha) यह नमाज सूर्यास्त के कुछ समय बाद रात को होती है.

विभाजन के दौरान हुए बड़े एलान:इसी जामा मस्जिद से कांग्रेस के कद्दावर नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अगस्त 1947 में मुसलमानों का आह्वान किया था कि वे पाकिस्तान जाने का इरादा छोड़ दें और भारत में ही रहें. उन्हें किसी बात की फिक्र करने की कोई वजह नहीं है. भारत उनका है. मौलाना आजाद की तकरीर के बाद दिल्ली के सैकड़ों मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने का इरादा छोड़ दिया था. मौलाना आजाद की उस तारीखी तकरीर से लगभग 25 साल पहले आर्य समाज के नेता और समाज सुधाकर स्वामी श्रद्धानंद ने जामा मस्जिद से हिंदू-मुसलमानों में भाईचारे पर अपना प्रखर वक्तव्य 1922 में रखा था.

शाहजहां ने डाली थी नींव: मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर फिरोज बख्त अहमद ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि जब जामा मस्जिद की नींव डाली जा रही थी, तब शाहजहां ने इस बात का ऐलान किया कि मस्जिद की नींव उसी व्यक्ति से डलवाई जाएगी, जिसने फजर की एक भी नमाज न छोड़ी हो. बहुत दिनों तक ढूंढने के बाद जब उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला तो उन्होंने खुद ही जामा मस्जिद की नींव रखी. शाहजहां ने उस समय बताया कि उन्होंने अपने जीवन एक भी फजर की नमाज नहीं छोड़ी है.

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फिरोज बख्त अहमद ने यह भी बताया कि शाहजहां ने जिस आर्किटेक्ट को मस्जिद बनवाने की जिम्मेदारी दी थी, वह तीन साल के लिए गायब हो गया था. इसके बाद शाहजहां ने उसका सिर कलम करने का ऐलान कर दिया, लेकिन उस व्यक्ति ने शाहजहां के पास पहुंचकर तीन साल न आने का कारण बताया. उसने कहा कि आपने मुझे ऐसी मस्जिद बनाने को बोला था, जो सालों तक टिकी रहे. मस्जिद की नींव को मजबूत बनाने के लिए जमीन को बरसात के तीन मौसम का पानी सोखना जरूरी था. अब तीन साल गुजर चुके हैं इसलिए मस्जिद की नींव मजबूती से रखी जा सकती है. इसी के बाद मस्जिद का निर्माण शुरू हुआ था.

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Last Updated : Jul 25, 2023, 6:31 PM IST

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