नई दिल्ली:दिल्ली की जामा मस्जिद मुसलिम समुदाय के लोगों के लिए खास महत्व रखती है. यहां इस्लाम धर्मावलंबी रोज नमाज अदा करने आते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यहां पहली बार नमाज कब अदा की गई थी. दरअसल, 25 जुलाई 1657 को ईद-उल-जुहा के दिन यानी 366 वर्ष पूर्व जामा मस्जिद में पहली बार नमाज अदा की गई थी. सिर्फ महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के दिनों में यहां नमाज पर रोक लगी, जिसे बाद में स्थिति नियंत्रण होने पर हटा लिया गया था. आइए जानते हैं, दिल्ली की कुछ सबसे मशहूर जगहों में शामिल इस मस्जिद का इतिहास और खासियत.
जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली में है और यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है. इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1650 ई. में कराया था, जिसमें संगमरमर और लाल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था. यह मस्जिद अपने विशाल गुंबद और सुंदर कला शैली के लिए विख्यात है. यहां एक मशहूर मीनार भी है, जहां से आप दिल्ली का अद्भुत नजारा देख सकते हैं. यह दिल्ली का एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल माना जाता है.
जामा मस्जिद का असली नाम:बताया जाता है कि इस मस्जिद का असली नाम 'मस्जिद-ए- जहान्नुमा' है. अरबी भाषा में इसका मतलब 'दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद' होता है. यह नाम मस्जिद के विशाल आकार और भव्यता को दर्शाने के लिए रखा गया है. सामान्यत: इसे 'जामा मस्जिद' के नाम से जाना जाता है.
गुंबद और मीनार है खासियत:जामा मस्जिद में उच्च गुंबद और चार मीनारें हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं. गुंबद की ऊंचाई लगभग 40 मीटर है और यह दिल्ली के सभी गुंबदों में से ऊंची है. यहां मौजूद मिनारें इतनी ऊंची हैं कि आप वहां से पूरी दिल्ली को देख सकते हैं.
चारों तरफ बाजार:दिल्ली का धार्मिक केंद्र होने के साथ, यह इलाका बाजार के मामले में भी काफी मशहूर है. यहां साल भर खरीदारों का तांता लगा रहता है. मस्जिद के पास प्राचीन मीना बाजार, मटियामहल, कबाड़ी बाजार, दरीबा कलां, चांदनी चौक, चितली कबर, चावड़ी बाजार और दरियागंज है, जो अपनी खासियत के लिए दुनियाभर में मशहूर है.
रमजान में जामा मस्जिद में नमाज अदा करने का महत्व:दिल्ली के जामा मस्जिद में रमजान के महीने में अलविदा की नमाज का नजारा देखने लायक होता है. यहां देशभर से मुसलिम समुदाय के लोग आते हैं और अपने परिवार और दोस्तों से साथ इफ्तारी करते हैं. लोगों का मानना है कि रमजान के आखिरी जुमे की नमाज अदा करने से दुआएं कुबूल होती हैं और खुदा रोजेदारों पर रहमत की बारिश करता है. साथ ही लोगों में प्यार और भाईचारा बढ़ता है. जामा मस्जिद में अलविदा की नमाज अदा करने के लिए लाखों की संख्या में लोग आते हैं.