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मुर्दाघर की खुदाई के दौरान मिली मुर्तुजा खान की सराय, इतिहासकारों ने दिखाया नक्शा

इतिहासकारों का कहना है कि ये दीवार यहां मुर्तुज़ा खान की सराय हुआ करती थी. जिसे बाद में जेल के रूप में उपयोग में लाया गया.

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Published : Jul 26, 2019, 9:45 PM IST

मुर्दाघर की खुदाई के दौरान मिली मुर्तुजा खान की सराय ETV BHARAT

नई दिल्ली: मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के मुर्दाघर की खुदाई तो इसलिए शुरू की गई थी, ताकि नया बनाया जा सके. लेकिन यहां ऐतिहासिक दीवार मिल गई. जिसे देखने वालों की भीड़ जमा हो गई.

सूचना मिलते ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहां खुदाई बंद करवा दी है. अब इसके इतिहास की जांच की जाएगी कि ये दीवार कब बनी थी और इसमें ऊपर खड़ी इमारत किस उद्देश्य के लिए काम में लाई जाती थी.

मुर्दाघर की खुदाई के दौरान मिली मुर्तुजा खान की सराय

इतिहासकारों ने दिखाया नक्शा
इतिहासकारों का कहना है कि ये दीवार यहां मुर्तुज़ा खान की सराय हुआ करती थी. जिसे बाद में जेल के रूप में उपयोग में लाया गया. मुर्तुज़ा खान मुगलवंश के शासक अकबर के दरबार में बक्शी (खजांची) था. जिसने बाद में जहांगीर के साथ भी काम किया. बाद में यह खंडहर में तब्दील हुआ और इमारत ढह गई.

इतिहासकार इसके पक्ष में एक नक्शा भी दिखाते हैं, जिसमे बहादुर शाह जफर रोड पर बने खूनी दरवाजे से होते हुए इस सराय के पास तक निर्माण को दिखाया गया है. हालांकि, पूरी सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन अभी तक की स्थिति पर चलें तो यहां सराय होने का प्रमाण है.

इतिहासकारों ने दिखाया नक्शा

'कभी मुर्तुज़ा खान की सराय हुआ करती थी'
इस सम्बंध में 'विरासत संस्था' के अध्यक्ष और इतिहासकार लखेंद्र सिंह प्रमाणों के आधार पर दावा करते हैं कि यह कभी मुर्तुज़ा खान की सराय हुआ करती थी. उसने अकबर और जहांगीर दोनों के शासनकाल में एक बक्शी (खजांची) के रूप में काम किया था. लखेंद्र सिंह बताते हैं कि प्रामाण और नक्शे के मुताबिक इस सराय के तीन दरवाजे थे और मुख्य दरवाजा पूरब की तरफ था.

बाद में जब अंग्रेजों ने करीब 1803 ईस्वी के बाद इसे जेल के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया. उस वक़्त कैदियों की संख्या कम हुआ करती थी. बाद में कैदियों की संख्या बढ़ने लगी, तो इसका उपयोग बंद कर दिया गया और देखरेख के अभाव में यह खण्डर बनता चला गया. करीब 1850 ईस्वी तक (आलमगीर द्वितीय और शाह आलम द्वितीय के शासनकाल तक) इसका उपयोग किया जाता रहा है.

इतिहासकार लखेंद्र सिंह बताते हैं कि यह सराय की नीव है जिसे संरक्षित करना आसान नहीं है. क्योंकि पूरी दिल्ली में काफी नीव हैं. जिसे संरक्षित नहीं किया जा सका.

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