नई दिल्ली/अररियाः कोरोना महामारी के इस दौर में लोगों की संवेदना इस कदर कठोर हो गई है कि मृत्यु के बाद लाशों को कांधा देने के लिए भी कोई तैयार नहीं हो रहा है. जिले के रानीगंज प्रखंड के एक गांव से ऐसा ही घटना सामने आई थी. जहां गांव वालों ने अर्थी को कांधा देने से इंकार कर दिया था. तब मां के शव का उसकी बेटी ने अकेले ही अंतिम संस्कार (last rites) किया था. लेकिन हद तो तब हो गई जब बेटी ने 10 दिन बाद मां-बाप के श्राद्धक्रम में ब्रह्मभोज किया तो उसी गांव के 150 लोग खाने पहुंच गए.
रानीगंज प्रखंड के विशनपुर पंचायत के मधुलता गांव के रहने वाले बीरेन मेहता की कोरोना से मौत हो गई थी. चार दिन बाद उनकी पत्नी प्रियंका देवी की भी मौत हो गई. घर में अकेली बेटी ने गांव वालों से जब अंतिम संस्कार की बात कही तो कोई इसके लिए तैयार नहीं हुए. पूरे गांव में कोई उन्हें कांधा देने तक नहीं आया. आखिरकार बड़ी बेटी सोनी कुमारी ने दाह संस्कार के पैसे नहीं होने पर पंचायत के मुखिया से पैसे लिए और अकेले अपने दो-भाई बहनों के साथ खेत में जाकर मां को दफना दिया था.
ब्रह्मभोज में खाने पहुंचे 150 लोग
मां की मृत्यु के बाद जिला प्रशासन की ओर से जो राशि मिली, उससे बेटी ने मां-पिता का श्राद्धक्रम पूरा करने के लिए ब्रह्मभोज का आयोजन किया. इस आयोजन में उसी गांव के 150 लोग पहुंच गए जिन्होंने मृतक के शव को उठाने से मना कर दिया था.
घर का कर्ज भी चुका रही है सोनी
दरअसल, आर्थिक तंगी में मां को दफनाने की तस्वीर मीडिया में आने के बाद रानीगंज के सीओ ने सोनी को 4 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी थी. जैसे ही मुआवजे के रूप में रुपये मिले. वैसे ही ग्रामीण सोनी और उसके छोटे बहन भाई को सांत्वना देने पहुंचने लगे. गांव वालों की सलाह पर बेटी सोनी ने श्राद्धक्रम का आयोजन किया था. श्राद्धकर्म में कई सामान सोनी दुकान से उधार लाई थी. उधार देने वालों का भी घर पर तांता लग गया. आर्थिक सहायता में मिली रकम को बैंक से निकालकर अब वो घर का उधार भी चुका रही है.
भाई और बहन के साथ सोनी कुमारी मृतक बीरेंद्र मेहता की दो बेटी सोनी और चांदनी और एक पुत्र नीतीश कुमार है. सोनी ने बताया कि मां की मौत के बाद रानीगंज के सीओ ने कोरोना को लेकर हुई मौत पर चार लाख रुपये का चेक दिया था. लेकिन अभी तक पापा के मौत के पैसे नहीं मिले हैं.