कई बार गाजियाबाद आए थे महात्मा गांधी नई दिल्ली/गाजियाबाद:हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाया जाता है. गांधी जी को राष्ट्रपिता इसलिए कहा जाता है कि 1947 के बाद का स्वतंत्र भारत उनकी ही विचार, कूटनीति, आजादी की लड़ाई के अनूठे तरीकों की देन है. देश को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी की भूमिका काफी अहम रही थी. उनका गाजियाबाद से भी काफी जुड़ाव रहा है. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर डॉ कृष्ण कांत शर्मा के मुताबिक, भारत की आजादी के आंदोलन के दौरान गाजियाबाद जनपद मेरठ का हिस्सा हुआ करता था. तब गाजियाबाद अलग जिला नहीं था. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी जी कई बार गाजियाबाद आए थे.
हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक था जुलूस:22 जनवरी 1920 को महात्मा गांधी मेरठ आए थे. सुबह 9:30 बजे बापू देवनागरी स्कूल पहुंचे तो एक अद्भुत जुलूस उनकी प्रतीक्षा कर रहा था. जैसे ही बापू स्कूल पहुंचे उनका भव्य स्वागत किया गया. फिर उन्हें एक बग्गी में बैठाया गया था. जुलूस में सबसे आगे बैंड बाजे वाले थे, कुछ लोग साइकिल पर भी सवार थे, जिनके पीछे पैदल चल रहे लोगों का एक बहुत बड़ा जनसैलाब था.
उसी में एक जत्था स्वयंसेवकों का भी था, जो खादी से बने वस्त्र पहने हुए थे. हाथों में उनकी एक लाठी थी और नंगे पैर चल रहे थे. इस दौरान जुलूस में एक अद्भुत नजारा देखने को भी मिला. जुलूस में मौजूद मुस्लिम लोगों के माथे पर चंदन का तिलक लगा था. वहीं, हिंदू लोगों ने माथे पर एक पट्टी बांध रखी थी जिस पर चांद सितारा बना हुआ था. जुलूस हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक था. जुलूस आगे बढ़ते हुए घंटाघर पहुंचा.
बर्फखाना मैदान में हुई थी जनसभा: महात्मा गांधी फिर 1929 में मेरठ आए, क्योंकि बहुत सारे लोग मेरठ की जेल में बंद थे. जेल में बंद लोगों से उन्होंने मुलाकात की, जिसके बाद बर्फखाना मैदान में एक बड़ी जनसभा की. इसमें गाजियाबाद के लोग भी शामिल हुए. असौड़ा के रहने वाले रघुवीर नारायण सिंह ने अपने क्षेत्र की जनता की ओर से 11 हजार रुपए की नोटों की थैली महात्मा गांधी को भेंट की थी. इस दौरान गांधी जी ने पांच दिन मेरठ, गाजियाबाद और आसपास क्षेत्र में यात्रा की. 28 अक्टूबर को वह पिलखुवा और निवाड़ी पहुंचे और कांग्रेस के पांच सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में जागरूक किया.
13 अप्रैल 1930 को चौधरी रघुवीर नारायण सिंह ने एक जत्था तैयार किया, जो गाजियाबाद होते हुए लोनी पहुंचा. लोनी पहुंचकर जत्थे में मौजूद लोगों ने नमक बनाया. यहां देवी धर्मशाला नामक स्थान पर चौधरी रघुवीर नारायण सिंह रुके थे. 14 अप्रैल को चौधरी रघुवीर को गिरफ्तार कर लिया गया था. उनकी गिरफ्तारी के विरोध में अनेक सभाएं हुई. गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने विदेशी शराब की दुकान और विदेशी वस्त्र का बहिष्कार किया. वहीं, सविनय अवज्ञा आंदोलन में गाजियाबाद की महिलाओं ने भी भाग लिया था. द्रोपती देवी, कृष्णा देवी और रामप्यारी आदि का नाम आता है.
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