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भारत में कब-कब दी गई फांसी की सजा, क्या है सजा-ए-मौत का कानून

निर्भया गैंगरेप-हत्याकांड के दोषियों को फांसी दिए जाने की तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. इस मौके पर ये जानना काफी अहम है कि आजादी के बाद भारत में कितने लोगों को फांसी दी गई, और फांसी दिए जाने के संदर्भ में क्या हैं हमारे देश का कानून. देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

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भारत में कब-कब दी गई फांसी की सजा, क्या है सजा-ए-मौत का कानून

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Published : Mar 20, 2020, 6:08 AM IST

नई दिल्ली: भारत में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (Cr.PC) के तहत फांसी दिए जाने का प्रावधान किया गया है. इस सजा में दोषियों को डेथ वारंट जारी होने के बाद फांसी के फंदे लटका कर मौत की सजा दी जाती है. यही प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में भी अपनाए गए हैं.

हालांकि, भारत में दुर्लभतम मामलों में ही फांसी की सजा दी जाती है. एक नजर गत वर्षों में भारत में दी गई फांसी की सजाओं पर

  1. भारतीय उच्चतम न्यायालय के फैसले के तहत 31.01.1982 को गीता और संजय चोपड़ा अपहरण मामले में रंगा-बिल्ला को मौत की सजा दी गई थी.
  2. 14.08.2004 में पश्चिम बंगाल की अलीपुर सेंट्रल जेल में धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटकाया गया था. धनंजय एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार कर हत्या मामले में दोषी था.
  3. 2008 में हुए मुंबई हमलों के इकलौते बचे आतंकी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21.11.2012 में पुणे की जेल में फांसी दी गई.
  4. 09.02.2013 में 2001 में हुए भारत की संसद पर हमले के दोषा अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई.
  5. मुंबई में 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को 30.07.2015 में फांसी दी गई. याकूब को नागपुर जेल में फांसी पर लटकाया गया.

दिल्ली में 'डेथ पेनाल्टी' पर की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी के बाद से जुलाई 2015 तक देश में तकरीबन 1414 कैदियों को फांसी दी गई. 2015 के बाद से भारत में अब निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया जाने वाला है.

भारत में कब-कब दी गई फांसी की सजा, क्या है सजा-ए-मौत का कानून

1950-2018 तक सुनाई गई फांसी की सजा का राज्यवार आंकड़ा :-
⦁ दिल्ली - 09
⦁ हरियाणा - 16
⦁ मध्य प्रदेश - 40
⦁ कर्नाटक - 25
⦁ महाराष्ट्र - 66
⦁ उत्तर प्रदेश - 66
⦁ पश्चिम बंगाल - 20
⦁ जम्मू-कश्मीर - 10
⦁ हिमाचल प्रदेश - 03
⦁ उत्तराखंड - 12
⦁ पंजाब - 14
⦁ राजस्थान - 17
⦁ गुजरात - 07
⦁ तमिलनाडु - 14
⦁ केरल - 18
⦁ आंध्र प्रदेश - 04
⦁ तेलंगाना - 07
⦁ छत्तीसगढ़ - 10
⦁ ओडिशा - 09
⦁ मणिपुर - 01
⦁ त्रिपुरा - 01
⦁ असम - 06
⦁ बिहार - 22
⦁ झारखंड - 18

भारत में सजा-ए-मौत के विभिन्न चरण
सबसे पहले कोई भी मामला निचली अदालत में पहुंचता है. यहां के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है और यदि कोई पक्ष संतुष्ट न हो तो वह शीर्ष अदालत में भी अपील कर सकता है.

वहीं सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा बरकरार रहने पर दोषी अथवा उसके परिजन या निकट संबंधी दया याचिका के लिए राष्ट्रपति, गृह मंत्रालय या राज्यपाल से अपील कर सकते हैं.

इस याचिका पर गृह मंत्रालय अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेजता है, जिसके आधार पर राष्ट्रपति दोषी के दंड पर फैसला करते हैं. वहीं राज्यपाल को भेजी गई दया याचिकाएं भी गृह मंत्रलाय भेजी जा सकती हैं.

इसके अलावा जेल प्रशासन भी अपनी ओर से अथवा दोषी की अपील पर उसकी ओर से क्षमा याचिका गृह मंत्रालय अथवा राष्ट्रपति को भेज सकता है. दया याचिका खारिज होने पर दोषी को फांसी पर लटका दिया जाता है.

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