नई दिल्लीः केजरीवाल सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति अब चरम पर पहुंच गई है. दिल्ली सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उपराज्यपाल से सीधे आदेश लेना बंद करें. इस बाबत सभी मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग को भी पत्र भेजकर यह हिदायत दी है कि वह बिना मंत्री के निर्देश के उपराज्यपाल के आदेश को ना मानें.
दरअसल, गत कुछ महीनों के दौरान दिल्ली सरकार के महत्वपूर्ण फैसलों की फाइलों पर अंतिम निर्णय लेने के लिए उपराज्यपाल सीधे अधिकारियों से आदेश देकर वो फाइलें मंगवा लेते थे. उस पर सभी पहलुओं को ध्यान में देखने के बाद ही अंतिम निर्णय लेते थे. इसको लेकर पहले भी कई बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ऐतराज जताते हुए उपराज्यपाल को पत्र लिखा था कि वह बिना चुनी हुई सरकार की जानकारी के अधिकारियों को सीधे कोई आदेश ना दें. इस दिशा में यह प्रैक्टिस रुकी नहीं और अब केजरीवाल सरकार ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह एलजी के आदेश को सीधा ना मानें.
मंत्रियों ने भी दिए निर्देशः सभी मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग सचिव को दिए निर्देश दिया है कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स (टीबीआर) का कड़ाई से पालन करें. सचिवों को निर्देश दिया गया है कि एलजी से दिए जाने वाले किसी भी सीधे आदेश को मंत्री को रिपोर्ट करें. दिल्ली सरकार का कहना है कि उपराज्यपाल संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन कर चुनी हुई सरकार को बाइपास कर सचिवों को सीधा आदेश जारी कर रहे हैं.
उपराज्यपाल के ऐसे असंवैधानिक सीधे आदेशों को लागू कर देना टीबीआर के नियम 57 का सरासर उल्लंघन है. उपराज्यपाल की तरफ से दिया जाने वाला ऐसा आदेश, संविधान और सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन माना जाएगा. संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हरसंभव तरीके से लागू कराने के लिए सरकार की ओर से गंभीरता से काम किया जाना चाहिए.
कल डिप्टी CM ने LG को लिखा था पत्रः गुरुवार को ही उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल को पत्र लिखकर ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस ऑफ जीएनसीटीडी (संशोधन) 2021 के नियम के तहत फैसले लेने की अपील की थी. सिसोदिया ने पत्र में लिखा था कि किसी मामले में उपराज्यपाल और मंत्री के बीच डिफरेंस ऑफ ओपिनियन की स्थिति में 15 दिन के भीतर उपराज्यपाल चर्चा के माध्यम से इसको सुलझाने का पूरा प्रयास करेंगे.
इसके बावजूद अगर डिफरेंस ऑफ ओपिनियन बरकरार रहता है तो मुद्दे को मंत्री परिषद के पास भेज दिया जाएगा. इसके बाद मंत्रीपरिषद 10 दिन के अंदर इस मुद्दे पर विचार कर अपना निर्णय देंगे. अगर इसके बावजूद मुद्दे का सामाधान नहीं निकलता या मंत्रीपरिषद द्वारा निर्धारित समय में निर्णय नहीं लिया जाता है तो ये माना जाएगा कि डिफरेंस ऑफ ओपिनियन अभी भी बना हुआ है और फिर एलजी नियम 50 के तहत इस पर अंतिम निर्णय लेने के मुद्दे को राष्ट्रपति के पास भेजे देंगे.
ये भी पढ़ेंः MCD Standing Committee Election: स्थायी समिति के चुनाव से कांग्रेसी पार्षद गैरहाजिर, मतगणना शुरू
BJP बोली- दिल्ली में अराजकता का नया दौरः दिल्ली भाजपा प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने आज से उपराज्यपाल से विवाद छेड़कर अराजकता का एक नया दौर प्रारंभ कर दिया है. उन्होंने कहा है कि गत एक वर्ष में दिल्ली सरकार के अनेक भ्रष्टाचार के मामले और अनियमताएं उजागर हुए हैं और उसी से बौखलाई अरविन्द केजरीवाल सरकार अब अधिकारों की एक नई बहस छेड़कर अपने भ्रष्टाचार और कुशासन से जनता का ध्यान भटकाना चाह रही है. उनका कहना है कि यह स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली एक केन्द्रशासित प्रदेश है, जहां सेवाओं के मामले में उपराज्यपाल का आधिपत्य है और उपराज्यपाल को हर एक सरकारी फैसले या सरकारी प्रोजेक्ट का अवलोकन करने का अधिकार है. उपराज्यपाल सीधे अधिकारियों की बैठक बुला सकते हैं.
ये भी पढ़ेंः Cheating Case: ठगी मामले में महाठग सुकेश चंद्रशेखर की 2 दिन और बढ़ाई गई हिरासत