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यौन उत्पीड़न के आरोपी सहायक प्रोफेसर का भत्ता जारी रखे जामिया : दिल्ली हाईकोर्ट - Jamia Millia Islamia

दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया को यौन उत्पीड़न के आरोपी सहायक प्रोफेसर का भत्ता जारी रखने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि यदि शिक्षक पर कदाचार का कोई आरोप लगाया जाता है. इस बीच विश्वविद्यालय द्वारा लागू मानदंडों के अनुसार याचिकाकर्ता के निर्वाह भत्ते का मासिक आधार पर भुगतान किया जाना जारी रहेगा.

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Published : Apr 24, 2023, 8:34 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया को एक सहायक प्रोफेसर का भत्ता जारी रखने का निर्देश दिया है. यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद सहायक प्रोफेसर को इस साल फरवरी में निलंबित कर दिया गया था. कोर्ट मामले में अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को करेगा. दरअसल, सहायक प्रोफेसर एस वीरामणि को आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) द्वारा सात फरवरी को तुरंत निलंबित कर दिया गया था, जबकि जांच लंबित थी.

संस्थान के एक छात्र द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 की धारा नौ के तहत शिकायत दर्ज कराई गई थी. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की डबल बेंच ने विश्वविद्यालय की तरफ से लागू मानदंडों के अनुसार मासिक आधार पर सहायक प्रोफेसर के निर्वाह भत्ते के लिए आदेश दिया. अधिवक्ता अमित कुमार की याचिका पर सुनवाई में यह आदेश आया.

उत्पीड़न की शिकायत इस साल छह फरवरी को जामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर को सौंपी गई थी और उसी दिन डीन, फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, एचओडी और शिकायतकर्ता के पिता की गठित समिति के समक्ष शिकायत दर्ज कराई गई थी. अदालत के आदेश में कहा गया है कि मामले को पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया था.

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हालांकि, अगले ही दिन यानी सात फरवरी 2023 को उन्हें विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन के जरिए निलंबित कर दिया गया था. सहायक प्रोफेसर की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील हर्षवीर प्रताप शर्मा ने कहा कि उक्त कार्यालय ज्ञापन के अनुसार याचिकाकर्ता को अपना निर्वाह भत्ता नहीं मिल रहा है.

उन्होंने पॉश अधिनियम की धारा 12 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि शिकायत प्राप्त होने पर आईसीसी या तो पीड़ित महिला को स्थानांतरित कर सकता है, या पीड़ित महिला को राहत प्रदान कर सकता है या पीड़ित महिला को ऐसी अन्य राहत प्रदान कर सकता है. याचिकाकर्ता को निलंबित नहीं किया जा सकता था.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आईसीसी के समक्ष कार्यवाही जारी रहेगी और आईसीसी की रिपोर्ट को सुनवाई की अगली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले न्यायालय के समक्ष रिकॉर्ड में रखा जाएगा. आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका में उठाए गए तर्कों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना आईसीसी द्वारा आयोजित जांच कार्यवाही में भाग लेने के लिए स्वतंत्र है.

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