नई दिल्ली: राजधानी के रामलीला मैदान में 12 साल बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महारैली की. इसके बाद आम आदमी पार्टी की नजरें उन विपक्षी दलों पर टिक गई हैं, जिनसे अभी केंद्र के ताजा अध्यादेश के खिलाफ समर्थन नहीं मिला है. वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सभी विपक्षी दल इस रैली की स्टडी कर, आगे फैसला लेंगे कि आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे पर समर्थन देना है या नहीं.
रैली के अगले दिन, यानी सोमवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 'अध्यादेश के खिलाफ रामलीला मैदान की रैली में बीजेपी के भी कई लोग आए थे. बीजेपी वाले भी कह रहे हैं, मोदी जी ने ये अध्यादेश लाकर सही नहीं किया.'
महारैली से 2024 के अभियान की शुरुआत:राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अजय पांडेय इस महारैली को 2024 को लेकर अरविंद केजरीवाल के अभियान की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं. वे कहते हैं पंजाब में सरकार बनाने और गुजरात विधानसभा चुनाव में 5 सीटें हासिल कर आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी का खिताब हासिल कर लिया है. अब केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं. रामलीला मैदान में अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल ने गैर बीजेपी शासित राज्य सरकारों तक यह संदेश पहुंचाने का प्रयास किया कि इस तरह के अध्यादेश लाकर उनके भी अधिकार सीमित किए जा सकते हैं. उनकी पार्टी ने इस इस रैली के जरिए यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह राष्ट्रीय राजनीति में शीर्ष नेतृत्व चाहती है.
दिल्ली बीजेपी ने AAP की महारैली को बताया फ्लॉप:12 साल बाद रामलीला मैदान में आयोजित महारैली में अरविंद केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेताओं ने जिस तरह अपना वक्तव्य रखा, उससे पता चला कि इसी मैदान से आंदोलन के बाद जन्मी आम आदमी पार्टी आज देश को नई राजनीति करना सिखा रही है. पहले कांग्रेस व अब बीजेपी शासित राज्य में आप सरकार की योजनाओं को लागू किया जा रहा है.
इस पर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि रामलीला मैदान में एक लाख लोगों को बुलाने का दावा पूरी तरह से खोखला साबित हुआ है. इसी मैदान से जिस निचले स्तर की भाषा का प्रयोग अरविंद केजरीवाल ने किया है, उसे सुनकर हर कोई शर्मिंदा है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति में जगह पाने के लिए आम आदमी पार्टी का जो सपना है, वह कभी पूरा नहीं होगा.