नई दिल्लीःभारत आजादी का 76वां वर्ष पूर्ण कर रहा है. हर साल 15 अगस्त को हिन्दुस्तान में धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. 1947 में भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति मिली थी. इस दिन न सिर्फ आजादी का जश्न मनाया जाता है, बल्कि स्वाधीनता संग्राम में जान कुर्बान करने वालों को भी याद किया जाता है. 76 वर्षों में महिलाओं की स्थिति में सुधार और सुरक्षा को लेकर बहुत से कानून आए. इन सबके बावजूद महिलाओं की वास्तविक स्थिति कहां ठहरती है? अदालतों में कौन से केस अधिक आते हैं? इन तमाम विषयों पर सुप्रीम कोर्ट में 16 साल से प्रैक्टिस कर रह रहीं एडवोकेट बांसुरी स्वराज से 'ETV भारत' ने खास बातचीत की.
परिस्थियों के हिसाब से विकसित हुए कानून
आजादी के समय बनाए गए सभी कानूनों को परिस्थितियों के मुताबिक विकसित किया गया है. समाज में जिस प्रकार की विकृतियां आएंगी, उनके मुताबिक कानून को बनाने की जरूरत होती है. आजादी से पहले भी क्रिमिनल लॉ के प्रावधान थे. IPC तो आजादी के पहले से है. इसमें महिला सुरक्षा के लिए कई कानून थे. मगर, 2018 में कई संशोधन किए गए. इसमें रेप के आरोपियों को मिलने वाली सजा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया.
बांसुरी ने बताया कि निर्भया कांड के बाद रेप केस के कानून में काफी संशोधन किए. इसी तरह जब समाज में घरेलू हिंसा के मामलों में तेजी आई, तब महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 तो लाया गया. इसके अलावा जब यह बात देखी गई कि बाल विवाह होने के कारण महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक विकास में बाधा आ रही है, तब बाल विवाह अधिनियम में बदलाव किए गए. इसमें पहले लड़कियों की शादी करने की उम्र 14 वर्ष थी. अधिनियम में संशोधन के बाद शादी करने के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष और लड़कों की न्यूनतम आयु की 21 वर्ष की गई.
लड़की के विवाह की भी न्यूनतम उम्र 21 वर्ष हो
बांसुरी ने बताया कि बाल विवाह अधिनियम में अभी संशोधन किया गया है, जिसमें लड़का-लड़की दोनों की शादी की उम्र को न्यूनतम 21 वर्ष किया गया. इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि छोटी उम्र में शादी होने के कारण लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पातीं. अगर इस संसोधन के बाद लड़कियां पढाई पूरी कर सकेंगी. उन्हें बाद में नौकरी हासिल करने में अधिक मुश्किलें नहीं झेलनी पड़ेगी.
POSH एक्ट से कार्यस्थल पर सुनिश्चित हुई महिलाओं की सुरक्षा
भारत एक विकाशील देश है. यहां कामकाजी महिलाओं की अहम भूमिका है. बांसुरी ने बताया कि जब महिलाओं ने घर से निकल कर काम करना शुरू किया, तो भी उनको कार्यस्थल पर कई तरह के शोषण का शिकार होना पड़ा है. इसे देखते हुए महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 को लाया गया. इस कानून की मदद से महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित की गई. खास तौर पर यौन उत्पीड़न के मामलों में. विशाखा कांड के बाद महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम को लाया गया. इसको POSH एक्ट भी कहते है.
सोशल मीडिया पर अभद्र कमेंट्स करने वालों पर एक्शन
महिलाओं को समाज में और सुरक्षित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 लाया गया. इसमें ऑनलाइन साइबर पुलिस के मामलों को कानूनी घेरे में लेने की तैयारी है. बासुंरी के मुताबिक, हम सभी जानते है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सभी के जीवन का अटूट हिस्सा बन चुका है. ऐसे में, अगर कोई महिला या युवती ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर कुछ भी पोस्ट करती है, तो कई बार उन्हें अभद्र कमेंट्स का सामना करना पड़ता है. ऐसी घटनाओं में इजाफा होने के बाद IT एक्ट में भी बदलाव किया गया है. इसमें अब आरोपी को 3 साल की सजा देने का प्रावधान किया गया है.