नई दिल्ली: दिल्ली समेत पड़ोसी राज्यों में जुलाई में हुई बारिश ने शहरी जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया. दिल्ली में बीते 45 साल बाद यमुना का जलस्तर रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया और अभी भी बाढ़ की स्थिति बनी हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर और इसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम साबित हो रही हैं. शहरों में अपनी सिविक समस्याएं बरकरार हैं. ऐसे में प्राकृतिक आपदा के दौरान ये समस्याएं इस कदर बढ़ जाती हैं कि जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है.
प्लानिंग मामलों के विशेषज्ञ और डीडीए के पूर्व टाउन प्लानर एके जैन बताते हैं कि दिल्ली विश्व में बहुत तेजी से बढ़ती हुई मेगा सिटी है. किसी भी शहर की अर्बन प्लानिंग में ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम की भूमिका अहम होती है. ड्रेनेज सिस्टम से ज्यादा से ज्यादा पानी नदियों, नहर और किसी दूसरे उपयुक्त स्थानों पर ले जाया जाता है, जबकि सीवरेज प्रणाली का उपयोग वेस्ट वाटर और ठोस पदार्थों के सही निपटान के लिए होता है. सड़कें तो बना दी गई हैं, लेकिन उनके किनारे ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाये गये हैं.
पुल निर्माण से बढ़ी मुश्किलेंःविशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली में यमुना नदी के बहाव में बाधक यमुना में बने वे पुल भी हैं, जो बड़ी तादात में बीते दो दशक के दौरान बनाए गए हैं. दिल्ली में राजधानी बनने के बाद के दो दशक में पुलों की संख्या 6 थी और आज इसकी संख्या बढ़कर 25 हो गई है. यमुना नदी में जगह-जगह पुलों के निर्माण के लिए पिलर का प्रयोग किया गया है. वह पानी की गति को ठीक तरह से बहने नहीं देते. नतीजा है कि वजीराबाद से ओखला बैराज तक यमुना का जलस्तर जब बढ़ता है तो पुल के चलते पानी तटीय इलाकों से शहरी इलाकों में भी प्रवेश कर जाता है. इस समस्या से अभी पिछले सप्ताह ही लोगों का वास्ता पड़ा है, ऐसे में जरूरत है कि नए सिरे से अर्बन प्लानिंग की समीक्षा की जाए.
यमुना शुरू से ही चंचल नदी रही है
बायोडाइवर्सिटी एक्सपर्ट डॉ. फैयाज खुदसर का कहना है कि यमुना शुरू से ही चंचल नदी रही है. यह रुख बदलती रहती है. इस बाढ़ से फिलहाल उन्हीं लोगों पर असर हुआ है, जो एक्टिव फ्लड प्लेन में बसे हैं. अगर देखें तो इस बार की बाढ़ ने बता दिया है कि दिल्ली के फ्लड प्लेन में अगर निर्माण कार्य करते हैं, तो नदी इस स्तर पर आ जाएगी कि शहरी क्षेत्र को बचाना मुश्किल होगा.