नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि पति पर विवाहेत्तर संबंधों का सार्वजनिक आरोप लगाना और उसे चरित्रहीन बताना क्रूरता की श्रेणी में आता है और यह तलाक के लिए पर्याप्त वजह है. जस्टिस सुरेश कैत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पत्नी ने अपने पति को नपुंसक बताकर उसे मर्दानगी की जांच (पोटेंसी टेस्ट) के लिए मजबूर किया जिस टेस्ट में वह फिट था.
हाई कोर्ट में पत्नी ने याचिका दायर की थी. पत्नी ने तीस हजारी के फैमिली कोर्ट के 31 अगस्त 2016 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें फैमिली कोर्ट ने पति की ओर से दायर तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी. फैमिली कोर्ट ने क्रूरता को आधार बनाते हुए तलाक की अर्जी मंजूर की थी. इस जोड़े की शादी 28 फरवरी 2000 को हुई थी. 27 अप्रैल 2004 को उनको एक पुत्र पैदा हुआ.
ये भी पढ़ें: 200 करोड़ की ठगी के मामले में एफआईआर निरस्त करने की जैकलीन फर्नांडीज की मांग पर ईडी को दिल्ली हाई कोर्ट का नोटिस
पत्नी ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर याचिका की. याचिका में पति पर दोस्त की पत्नी के साथ विवाहेत्तर संबंध के आरोप लगाए थे, जिसे वह साबित नहीं कर पाई. हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी ने दावा किया था कि उसका पति नपुंसक है और उसे मर्दानगी की जांच कराने के लिए मजबूर किया, जिसमें वह बिल्कुल फिट पाया गया.
हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी ने अपने बच्चे को भी पति से अलग कर दिया जो मानसिक क्रूरता है. एक पिता के लिए अपने बच्चे को दूर जाते देखना और पूरी तरह से उसके खिलाफ होते देखने से ज्यादा दर्दनाक कुछ नहीं होता है. इस दौरान पति के मन में कई बार खुदकुशी का भी ख्याल आया. पत्नी ने अपने पति को सार्वजनिक रुप से बेइज्जत करने की कोशिश की. पत्नी ने पति के ऑफिस मीटिंग के दौरान सभी कर्मचारियों और मेहमानों के सामने उस पर बेवफाई के आरोप लगाए और दफ्तर की महिला कर्मचारियों को भी परेशान किया. कोर्ट ने कहा कि पति के साथ ऐसा व्यवहार क्रूरता है.
ये भी पढ़ें: पत्नी का करवा चौथ का व्रत न रखना क्रूरता नहीं, हाई कोर्ट ने निचली अदालत के तलाक के फैसले को बरकरार रखा