नई दिल्ली: गोकलपुरी के मोहम्मद सलीम तब 8 साल के थे, जब 1984 में दंगा हुआ था और पिछले साल 44 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली का दंगा भी देखा. इन दोनों से जुड़ी यादों को बयां करते हुए वे सिहर उठते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि दोनों का ही मंजर लगभग एक जैसा था. त्रिलोकपुरी के सी. आदि केशवन को भी अब तक 1984 के दंगे वाले दिन याद हैं.
दिल्ली दंगों का क्या है इतिहास..? '1984 के दंगे के रहे हैं साक्षी'
सी. आदि केशवन बताते हैं कि कैसे तब भीषण रक्तपात दिखा था. 1984 के दंगे में दिल्ली में जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उनमें त्रिलोकपुरी भी शामिल था. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि त्रिलोकपुरी में भीषण लूट और हिंसा हुई थी. सी. आदि केशवन 2014 के त्रिलोकपुरी दंगे के भी साक्षी रहे हैं. तब दिवाली के समय हिंसा भड़की थी.
'सिर्फ 2020 में ही नहीं झुलसी दिल्ली'
दिल्ली वालों की ये यादें बताती हैं कि राजधानी सिर्फ 2020 में ही दंगे की आग में नहीं झुलसी. आजादी के बाद से अब तक दिल्ली के कई इलाके कमोबेश दंगे की चपेट में आ चुके हैं. 1984 तो दिल्ली के इतिहास में सिख दंगे का पर्याय ही बन चुका है. इसके अलावा 2016 में दिल्ली में ही एक नाबालिग से छेड़छाड़ के मामले ने हिंसा का रूप ले लिया था.
'2018 में मंदिर को लेकर हुआ था बवाल'
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के संगम पार्क में 2018 में दो समुदायों के लोग आपस मे भीड़ गए थे. इस दौरान खूब पथराव हुआ, जिसमें करीब आधे दर्जन लोग बुरी तरह से जख्मी हुए थे. वहीं 2019 में मध्य दिल्ली में एक मंदिर मामले को लेकर बवाल शुरू हुआ था. हालांकि इन सब मामलों में स्थिति को ससमय नियंत्रित कर लिया गया. लेकिन 2014 में पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में स्थिति अनियंत्रित हो गई थी.
'माता की चौकी से शुरू हुआ विवाद'
दिवाली के समय त्रिलोकपुरी में माता की चौकी को लेकर विवाद शुरू हुआ था, जिसने हल्की झड़प के बाद हिंसा का रूप ले लिया. इस मामले में करीब तीन दजर्न लोग घायल हुए थे. इन्हीं घायलों में से एक हैं, चेतन कुमार. तब की यादें ईटीवी भारत से साझा करते हुए चेतन ने बताया कि उस दिन भाईदूज था और वे बहन के लिए मिठाई लाने जा रहे थे, तभी अचानक कहीं से आकर उन्हें गोली लगी.
'अब तक हार्ट में फंसी है बुलेट'
बकौल चेतन, उन्हें जब अस्पताल ले जाया गया, तब पता चला कि गोली लगी तो है, लेकिन बाहर नहीं निकल सकी और हार्ट के पास फंसी हुई है. ऑपरेशन करने में खतरा था, इसलिए गोली नहीं निकाली गई और वो बुलेट अब भी चेतन के शरीर के अंदर ही है. उसके कारण उन्हें काफी परेशानी भी है, उन्होंने बताया कि वे भारी वजन नहीं उठा पाते हैं. त्रिलोकपुरी के ही यमुना प्रसाद कोली ने भी अपने अनुभव साझा किए.
'...तो और बुरे हो सकते थे हालात'
यमुना प्रसाद कोली ने बताया कि उनके सामने झगड़ा शुरू हुआ था, जिसने दंगे का रूप ले लिया. उनका कहना था कि घर बनाने के लिए पत्थर इकट्ठे किए थे, जो लोगों ने दंगे में फेंक दिए. त्रिलोकपुरी के ही मुकेश कुमार बताते हैं कि थोड़ी देर से ही सही, लेकिन पुलिस ने स्थिति पर काबू पा लिया था, वरना हालत और खराब हो सकते थे. मुकेश कुमार ने 1984 के भयावह दृश्य भी साझा किए, तब वे 8 साल के थे.
'जब जला दी गईं थीं दुकानें'
बाबर सैफी की गोकलपुर टायर मार्केट में दुकान है. पिछले साल दंगे के दौरान उनकी दुकान जला दी गई थी. दुकान तो फिर से ठीक हो गई है, लेकिन वे अब तक दंगे के दृश्य नहीं भूल सके हैं. सिर्फ बाबर सैफी ही नहीं, इस पूरे इलाके में ऐसे दर्जनों लोग हैं, जिनके पास दंगे की चार रातों की त्रासदी भरी कहानियां हैं. इनमें से कई ऐसे हैं जो 1984 का दंगा भी देख चुके हैं और अब इसी दुआ में हैं कि दिल्ली को फिर से ऐसे दिन न देखने पड़े.
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