नई दिल्ली:आउटर रिंग रोड के पास स्थित गुरुद्वारा बाला साहिब सिखों के आठवें गुरु श्री हरकिशन महाराज जी को समर्पित है. कहा जाता है कि गुरु महाराज जी ने अपना अंतिम समय इसी स्थान पर गुजारा था और उन्होंने अपना शरीर यहीं त्याग दिया था, जहां मौजूदा समय में गुरुद्वारा बाला साहिब बना हुआ है. इसी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था, जिसके बाद उनकी अस्थियां दिल्ली से बाहर पातालपुरी और गुरुद्वारा कीरतपुर साहिब ले जाई गई थीं.
चेचक और हैजा बीमारी को लेकर की थी मदद
बताया जाता है कि उस समय चेचक और हैजा की भयानक बीमारी फैली थी, तो गुरु श्री हरकिशन महाराज जी युवा अवस्था में लोगों के बीच जाकर उनका इलाज किया करते थे और उनकी मदद करते थे. यह देख कर हर कोई प्रभावित था कि एक छोटा बालक बिना किसी भेदभाव के हर किसी की मदद कर रहा है. गुरु महाराज जी ने हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर एक समुदाय के लोगों की सेवा की थी.
तंबू लगाकर रहे थे गुरु श्री हरकिशन साहेब जी
जब वह स्वयं इस बीमारी की चपेट में आ गए, तो उन्होंने लोगों से कहा कि उन्हें शहर से दूर ले जाएं, जिससे कि अन्य लोगों को यह बीमारी न हो पाए, जिसके बाद लोग उन्हें शहर से बाहर इस जगह ले कर आ गए. जहां मौजूदा समय में गुरुद्वारा बाला साहिब बना हुआ है.
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मौजूदा समय में भगवान नगर, आश्रम के नजदीक आउटर रिंग रोड पर यह गुरुद्वारा स्थित है. बताया जाता है कि पहले यहां से यमुना बहती थी, लेकिन बाद में उसका रास्ता बदल दिया गया और यहां गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण हुआ. गुरु जी महाराज यहां यमुना के किनारे अपनी इच्छा के अनुसार खुले मैदान में तंबू लगाकर रहे थे.
हर धर्म के लोगों की करते थे मदद
मान्यता यह भी है कि जब चेचक और हैजा जैसी बीमारी हुई थी तो गुरु महाराज जी ने अपने ऊपर यह बीमारी ले ली थी और बाल अवस्था में बिना किसी भेदभाव के हर किसी की मदद की थी. गुरु जी के इस भाव को देखकर उस समय हर एक धर्म के प्रतिनिधि उनसे प्रभावित हुए थे कि एक बालक हर एक धर्म के लोगों का बिना भेदभाव के सेवा कर रहा है. मुस्लिम लोग उन्हें बालापीर कहकर बुलाते थे.