नई दिल्ली:लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट के समय से ही कहा जाता रहा है कि इस चुनाव से मुद्दे गायब हैं. दिल्ली में पानी की समस्या पर गौर करें और चुनावी चर्चाओं में इसे तलाश करें तो निराशा हाथ लगती है. दिल्ली में पानी की किल्लत सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन न तो जनता इस पर सवाल पूछ रही है और ना ही नेताओं के लिए ये मुद्दा है.
पेयजल संकट क्यों नहीं बना चुनावी मुद्दा 2020 तक खत्म हो जाएगा भूजल!
बीते साल नीति आयोग की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि 2020 तक दिल्ली का भूजल समाप्त हो सकता है. दिल्ली की जनसंख्या में लगातार हो रही वृद्धि और पानी के स्रोतों के तेजी से दोहन के कारण दिल्ली में 10 सेंटीमीटर प्रति साल की दर से भूजल स्तर नीचे जा रहा है.
बीते साल मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली से जुड़ी तमाम अथॉरिटीज को इसे लेकर फटकार भी लगाई थी कि दिल्ली के भूजल स्तर को सुधारने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है.
टैंकरों से पौधों की सिंचाई घंटों करना होता है पानी के लिए संघर्ष
इन दोनों बातों को एक साल बीत चुका है, लेकिन बीते 1 साल में ऐसे कोई सटीक उपाय सामने नहीं आए, जो इस दिशा में कुछ सकारात्मक तस्वीर पेश कर रहे हों. दिल्ली में आज भी एनडीएमसी के इलाके में पार्क और रोड के डिवाइडर के बीच पौधों में टैंकरों के जरिए पानी डालता देखा जा सकता है.
दूसरी तरफ दिल्ली की कच्ची कॉलोनियों या दूरदराज के इलाकों में अब भी लोग पानी के लिए लम्बी लाइनों में लगकर टैंकर का घंटों इंतजार करते हैं.
चार साल में ही सूख गए सारे चापाकल
पौधों में पानी देना किसी भी तरह से गलत नहीं है, लेकिन पानी उन तक भी पहुंचना चाहिए, जो राजधानी में रहते हैं. ईटीवी भारत ने दिल्ली की कई जगहों पर जाकर पड़ताल की, कि वहां पर भूजल की स्थिति क्या है. पूर्वी दिल्ली का एक पॉश इलाका है, मयूर विहार. यहां पर सबके घरों में नल से पानी की सप्लाई होती है, लेकिन उसी के पास है चिल्ला गांव.
यहां पर हर सुबह, हर शाम लोग घंटों लाइन में लगकर टैंकर का इंतजार करते हैं. चिल्ला गांव में चार पांच साल पहले दर्जनों की संख्या में चापाकल लगाए गए थे, लेकिन कुछ समय बाद ही ये सूख गए.
लगातार गिर रहा है भूजल का स्तर
वहीं से थोड़ी दूर पर यमुना खादर में हम गए, जहां पर पंपिंग सेट के जरिए भारी मात्रा में जमीन के नीचे से पानी निकाला जा रहा था और उससे खेतों की सिंचाई हो रही थी. खेतों की सिंचाई भी जरूरी है, लेकिन फिर सवाल वही आ जाता है कि भूजल स्तर को बरकरार कैसे रखा जाए. इसे लेकर तमाम कानून बने हैं. दिल्ली में समर्सिबल या बोरिंग को गैरकानूनी कर दिया गया है, लेकिन फिर भी पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
नीति आयोग की रिपोर्ट चिंताजनक है
इस पूरे मुद्दे पर ईटीवी भारत ने वाटर एड की दिल्ली प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर शालिनी चतुर्वेदी से बातचीत की. उन्होंने पीने के पानी की समस्या के साथ-साथ ग्राउंड वाटर को लेकर भी कई बातें सामने रखी. उन्होंने बताया कि दिल्ली के कई इलाके भूजल के मामले में रेड जोन में हैं, यानी वे खतरे के निशान से ऊपर हैं और अब भी वहां पर पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
ऐसे हालात और नीति आयोग की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से एक भयावह स्थिति की ओर इशारा करती है.
संकट है लेकिन चुनावी मुद्दा क्यों नहीं
तमाम रिपोर्ट्स और नियम-कानूनों के बावजूद दिल्ली लगातार पानी का दोहन करती जा रही है और खुद को एक बड़े खतरे की ओर धकेल रही है. अफसोस कि जिंदगी के लिए सबसे बड़ी जरूरत पानी चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं है, ना तो जनता इस बारे में सवाल पूछ रही है और न ही नेता इसे अपने वादों और दावों में शामिल कर रहे हैं.