नई दिल्ली:भारत की आजादी के बाद अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी कबाइली कश्मीर में घुस आए थे. खासकर नौशेरा को उन्होंने घेर लिया था और अब नौशेरा को कबाइलियों से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी डोगरा रेजिमेंट के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने. नौशेरा के झांगड से ब्रिगेडियर उस्मान ने कबाइलियों को खदेड़ दिया था, लेकिन वह नौशेरा में ही 3 जुलाई को शहीद हो गए.
शहीद ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र क्षतिग्रस्त
'अंतिम संस्कार में आए थे नेहरू'
3 जुलाई को दोनों तरफ की लड़ाई में ब्रिगेडियर उस्मान कबाइलियों के गोले का शिकार हो गए. लेकिन इस लड़ाई में एक योद्धा की उनकी भूमिका ने उन्हें नौशेरा का शेर बना दिया. मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का अंतिम संस्कार जामिया में किया गया, जहां खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वायसराय माउंटबेटन भी मौजूद रहे.
'टूटा पड़ा है नाम वाला पत्थर'
जिस जगह पर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का अंतिम संस्कार हुआ था, उसे आज वीआईपी कब्रिस्तान के नाम से जाना जाता है. यहां सैकड़ों कब्रें हैं, लेकिन उनमें कुछ खास लोगों की भी कब्र है, जिनमें से एक है, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की कब्र. यहां बनाए गए स्मारक पर किसी ने तोड़फोड़ की है और स्मारक के जिस हिस्से पर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम लिखा है, वो पत्थर टूटा पड़ा है.
'टूटे हैं पीलर, बिखरा है कूड़ा'
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह करीब तीन महीनों से ऐसे ही है. जामिया से ही पढ़े हुए स्थानीय नईम चौधरी ने इटीवी भारत से बातचीत में कहा कि तीन महीने पहले मैंने ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के रिश्तदारों को इसकी खबर दी थी, लेकिन कोई नहीं आया. यहां शहीद के स्मारक की तौहीन का आलम यह है कि स्मारक के चारों ओर लगाए गए पिलर तो टूटे ही हैं, लोग यहां कूड़ा भी फेंकते हैं. वहीं कब्रिस्तान की चहारदीवारी भी टूटी हुई है.
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'जामिया ने कहा- हमारी जिम्मेदारी नहीं'
शहीद के स्मारक की ऐसी बेकद्री का सवाल लेकर हम जामिया गए. जामिया मिलिया इस्लामिया के पीआरओ अहमद अजीम ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कब्रिस्तान की जमीन भले ही जामिया की हो, लेकिन कब्रों के देखरेख की जिम्मेदारी हमारी नहीं है. उन्होंने बताया कि ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के परिजन और सेना उनके स्मारक की देखरेख करते रहे हैं. लेकिन 2016-17 के बाद से सेना उधर नहीं गई है.
'2016 तक आती थी सेना'
नईम चौधरी ने बताया कि 2016 तक हर साल ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर सेना के जवान यहां आते थे और साफ सफाई करके यहां सलामी दी जाती थी, कार्यक्रम होते थे, लेकिन उसके बाद सेना का आना बंद हो गया. हालांकि अब जब स्मारक की तोड़फोड़ को लेकर सवाल उठ रहे हैं, तब यहां सेना हरकत में दिख रही है. आज यहां सेना के कुछ अधिकारी तहकीकात करते दिखे. हमने उनसे भी बातचीत की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात नहीं की.