नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम का चुनाव (Delhi Municipal Corporation Election) संपन्न हो गया. चुनाव से पहले दिल्ली में कूड़े का पहाड़ एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरा था. अभी तक सभी चुनावों में यमुना नदी को साफ बनाने का मुद्दा तो सभी राजनीतिक दल उठाते रहे हैं, लेकिन पहली बार एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कूड़े के तीन पहाड़ों को खत्म करने का वादा किया. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसकी गारंटी दी है. अब एमसीडी चुनाव में मिली जीत के बाद आम आदमी पार्टी कूड़े के पहाड़ों को हटाने के लिए क्या करेगी, इस बात की चर्चा शुरू हो चुकी है.
दिल्ली के तीन मुहाने पर स्थित इन कूड़े के पहाड़ों से कूड़ा निस्तारण करने की कवायद 2008 में शुरू हुई थी, लेकिन 14 साल बाद भी अधिक बदलाव नहीं हुआ है. जिस रफ्तार से इस दिशा में काम चल रहा है, एक दशक बाद भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही रहेगी. वर्तमान में एक आम आदमी जिस प्रकार बिजली, पानी, ट्रैफिक की समस्याओं से जूझ रहा है, उसी तरह आज अपने आसपास फैले कूड़े को हटाने के लिए उसे जद्दोजहद करनी पड़ती है.
क्या कहती है रिपोर्टः यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2022 की रिपोर्ट कहती है कि वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली वालों की आयु में औसतन 9 साल की कमी आई है. दमा और सांस के गंभीर रोगों से जूझ रहे लोगों को डॉक्टर सलाह देते हैं कि वे दिल्ली छोड़ दें. एमसीडी चुनावों के नतीजे घोषित होने के बाद इन आंकड़ों और हालातों का जिक्र करना इसलिए जरूरी है क्योंकि वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण यहां सुलगते हुए कूड़े के पहाड़ भी हैं.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग करने वाली प्रमुख अनुमिता राय चौधरी भी मानती हैं कि ओखला, भलस्वा और गाजीपुर के लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लोगों को इन कूड़े के पहाड़ से सबसे ज्यादा परेशानी है. कूड़े के पहाड़ों के नीचे रहने वाले रासायनिक अपशिष्ट भूमिगत पानी के स्रोतों को भी प्रदूषित कर रहे हैं. इन इलाकों के आसपास के लोगों को सांस के साथ-साथ खुजली और एलर्जी की बीमारियां भी हो रही है. त्वचा रोग संक्रामक रोग होते हैं. अगर किसी खास इलाके में ऐसे लोग अधिक हैं तो वे मेट्रो, बस व दूसरी भीड़भाड़ वाली जगह पर दूसरी आबादियों में भी इसे संक्रमित कर सकते हैं. कूड़े के पहाड़ और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट दिल्ली एनसीआर के किसी खास इलाके की समस्या नहीं बल्कि पूरी आबादी की दिक्कत है. इससे मुक्ति के लिए आम आदमी पार्टी ही नहीं बीजेपी, कांग्रेस तीनों को मिलकर काम करना होगा.
दिल्ली में कूड़े की स्थितिः दिल्ली की सभी रिहायशी कॉलोनी और व्यवसायिक इलाके से प्रतिदिन निकलने वाले करीब 8-10 हज़ार मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण की जिम्मेदारी एमसीडी की है. प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले कूड़े में 32 फीसदी खाद बनाने योग्य सामग्री होती है. अन्य रिसाइक्लिंग होने वाले पदार्थ में 6.6 फीसदी कागज, 1.5 फीसदी प्लास्टिक, 2.5 फीसदी धातु और अन्य भवन निर्माण में प्रयुक्त मेटेरियल होता है. विरासत में मिले ओखला, गाजीपुर तथा भलस्वा लैंडफिल साइट पर पहले से ही कूड़ा ठसाठस भरा है.
कूड़ा निस्तारण के लिए व्यापक स्तर पर कवायद 2008 में शुरू हुई, लेकिन अन्य विकसित देश के जिन शहरों में कूड़ा निस्तारण के लिए वर्षों पहले जिस तकनीक का सहारा लिया, उस तकनीक का दिल्ली में अब इस्तेमाल हो रहा है. परिणाम है कि दक्षिणी दिल्ली के ओखला लैंडफिल साइट पर प्रतिदिन दो हजार मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा फेंका जाता है और वहां वर्ष 2008 में कूड़े से बिजली तैयार करने के लिए लगे संयंत्र आधे कूड़े को भी ठिकाना नहीं लगा रहा.
कूड़े के ढेर पर नहीं छा रही हरियालीःएमसीडी के उद्यान समिति के पूर्व चेयरमैन धर्मवीर ने बताया कि तालमेल के अभाव में कूड़े के ढेर पर हरियाली नहीं छा रही है. मई 2008 में भलस्वा, गाजीपुर, ओखला स्थित तीनों लैंडफिल साईटों के इर्दगिर्द ढेरों पेड़-पौधे लगाकर कूड़ों के ढेर को पेड़ों से ढकने की योजना तैयार की गई. ताकि लैंडफिल से प्रचुर मात्रा में निकलने वाला कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसे जहरीले गैस को इर्दगिर्द लगे पेड़ों से निकलने वाला ऑक्सीजन गैस रिफाइन करने का भी काम करेगा और जहरीली गैस और बदबू आसपास के रिहायशी इलाके में रहने वाले लोगों तक पहुंचने से रोका जा सके. मगर इस योजना के बाद एमसीडी के इंजीनियरिंग व उद्यान विभाग द्वारा तालमेल बिठाकर काम न करने से मौजूदा लैैंडफिल साइट पर पौधारोपण का काम आधा भी नहीं हो पाया है.
कूड़ा हटाने के लिए अब तक की गई कवायदःनागपुर, बंगलुरु, अहमदाबाद शहर में कूड़ा निस्तारण के लिए वेस्ट मैनेजमेंट का जो तरीका प्रयोग किया जा रहा है, इसका अध्ययन करने के लिए बीते वर्षों में कई बार एमसीडी के अधिकारियों ने वहां के दौरे पर गए थे. किसी तकनीक पर सहमति नहीं बनने से ठीक तरह से उसे लागू नहीं कर पाए. कूड़ा निस्तारण के लिए संयंत्र लगाने में सुस्ती के साथ ही एमसीडी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है, लैंडफिल साइट के समीप कूड़ा प्रोसेसिंग प्लांट लगाने के लिए जगह हासिल करना.
अभी तक क्यों नहीं खत्म हुआ कूड़े का पहाड़ः कूड़ा निस्तारण के लिए विश्व में प्रयुक्त उन्नत तकनीक के इस्तेमाल के बारे में किसी भी एजेंसी ने कभी काम नहीं किया. वहीं, वेस्ट मैनेजमेंट के तरीके को अपनाने के लिए अब तक स्टडी टूर को गंभीरता से नहीं लिया गया. इसके अलावा कूड़ा निस्तारण के लिए रिसाइक्लिंग प्लांट लगाने के लिए लैंडफिल साइट के समीप जगह नहीं मिलना भी एक प्रमुख कारण है.
एमसीडी चुनाव के प्रभारी दुर्गेश पाठक से जब कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के प्लान के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि देश के अन्य शहरों में कूड़े का पहाड़ नहीं दिखता. विदेशों के अंदर कूड़े के पहाड़ नहीं होते, खत्म कर दिए गए हैं. उनसे सीखेंगे, समझेंगे और उनसे समझकर हम प्लान बनाएंगे. कूड़े के पहाड़ को खत्म करना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. हम यह करके दिखाएंगे. विकसित देशों में के शहरों में घरों से निकलने वाला कूड़ा कुछ ही घंटों में निस्तारण हो जाता है तो वैसा ही यहां करके भी दिखाएंगे.
विदेशों में कूड़ा निस्तारण की प्रक्रियाःसाउथ हैम्पटन, लॉस वेगास, ओंटेरियो, इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा के वे शहर हैं, जहां रोजाना एकत्रित होने वाला हजारों टन कूड़ा बस कुछ घंटे का मेहमान होता है. दोपहर से लेकर शाम ढलते-ढलते तक कूड़े का निस्तारण इस तरह से होता है कि तैयार होने वाली बिजली ग्रिड तक पहुंच जाती है. रिसाइक्लिंग प्लांट से तैयार खाद गोदाम में तथा एकत्रित हुए कूड़े में प्लास्टिक, गत्ता आदि को दोबारा इस्तेमाल लायक बना फैक्टरी में कच्चे माल के रूप में भेज दिया जाता है. नतीजा है कि वहां कूड़े का कहीं नामोनिशान तक नहीं दिखाई देता. लैंडलिफ साइट की जगह इको फ्रेंडली रिसाइक्लिंग प्लांट लगी हुई है. विकसित देशों के इन शहरों में यह सारी प्रक्रिया 80 के दशक से यहां चल रही है.