नई दिल्ली/हरिद्वार:आज हम आपको एक ऐसी महिला हंसी प्रहरी की कहानी से रूबरू करवाएंगे, जो कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय की शान रही है. छात्रा यूनियन वाइस प्रेसिडेंट रहीं हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी में पास करने के बाद विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की. लेकिन आज ये हालात हैं कि पढ़ाई-लिखाई में तेज हंसी हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा घाटों पर भिक्षा मांगने पर मजबूर हैं.
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है. इसी गांव में पली-बढ़ीं हंसी 5 भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी हैं. पहाड़ी परिवार में सब कुछ बेहतर चल रहा था. परिवार की सबसे बड़ी बेटी हंसी पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी. पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे. अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया था.
छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट रह चुकी हैं हंसी
परिवार की सबसे बेटी हंसी गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंच गई. एडमिशन की तमाम प्रक्रिया और टेस्ट पास करने के बाद हंसी का दाखिला विश्वविद्यालय में हो गया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1998-99 और 2000 वह चर्चाओं में तब आई. जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की.
हंसी विश्वविद्यालय में 4 साल लाइब्रेरियन भी रहीं
हंसी प्रहरी बताती हैं कि उन्होंने लगभग 4 साल विश्वविद्यालय में नौकरी की. उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी. चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थी. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी कीं.
2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आ गया. ईटीवी भारत से बात करते हुये हंसी ने कहा कि वो नहीं चाहती हैं कि उनकी वजह से उनके दो भाई और बाकी परिवार के सदस्यों पर किसी तरह का भी फर्क पड़े. उन्होंने इतना जरूर बताया कि जो इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी तनातनी का नतीजा है. हंसी ने अपने परिवारिक मुद्दे पर ज्यादा खुलकर बात तो नहीं की. लेकिन उनका कहना है कि जिस क्षेत्र से वह आती हैं, वहां पर अगर इस तरह की बातें वह अपने परिवार-ससुराल से बाहर आकर कहेंगी तो इसका असर उनके परिवार पर भी पड़ेगा.
शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं. तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं. वो बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. इसी दौरान वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वो आज ऐसी स्थिति में भिक्षा मांगने को मजबूर हैं. लेकिन अब उनको लगता है कि अगर उनका सही सही इलाज हो रहने के लिए व्यवस्था हो बच्चे का लालन-पालन अच्छा हो तो आज भी वह काम करने के लिए तैयार हैं.
हंसी ने ईटीवी भारत से बयां की जिंदगी की कहानी