नई दिल्ली:लंबे समय से महिला आरक्षण बिल को लेकर चर्चाएं हो रही हैं और कई महिला संगठन, इस बिल को लागू करने की मांग भी करते आए हैं. इस बीच मंगलवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया. हालांकि, लोकसभा की कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी गई है, लेकिन बिल के पेश होने से चर्चाओं ने एक बार फिर जन्म ले लिया है.
डीसीडबल्यू अध्यक्ष ने दी प्रतिक्रिया:दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर महिला आरक्षण बिल को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने लिखा, 'आजादी के 76 साल बाद सरकार ने माना जब तक महिलाएं संसद और विधानसभा में नहीं होंगी, तब तक देश की प्रगति सिर्फ कागज पर होगी. महिलाओं का मुद्दा आज देश में ज्वलंत है, जिसके चलते केंद्र सरकार देश में महिला आरक्षण बिल ला रही है. सरकार को बधाई देती हूं और आशा है अब बृजभूषण जैसों की जगह संसद में महिलाएं लेंगी.'
किया जाए कमेटी का गठन:उधर, समाजशास्त्री और महिला कार्यकर्ता डॉ. आकृति भाटिया ने कहा कि महिला आरक्षण बिल के पीछे दो मुख्य बातें हैं. पहली यह कि इसमें केवल उच्च जाति की पढ़ी-लिखी महिलाओं को जगह न देकर दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण होना चाहिए. दूसरी बात यह है कि पंचायतों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया गया है, लेकिन सभी जानते हैं कि उनके नाम पर उनके पति द्वारा सभी निर्णय लिए जाते हैं. ऐसा महिला सांसदों के साथ न हो, इसके लिए कमेटी का गठन हो जो इसकी नियमित जांच करे.
महिला पहलवानों को मिले इंसाफ:उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल को चुनावी मुद्दा बनाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए. अगर मौजूदा सरकार सच में महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की बात करती है, तो यह हर क्षेत्र में दिखना चाहिए. साथ ही उन्होंने महिला पहलवानों के धरने को याद करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार सच में महिलाओं के लिए काम करती है, तो फिर प्रोटेस्ट कर रही महिलाओं को अभी तक इंसाफ क्यों नहीं मिला? उल्टा उन्हें पुलिस ने मारा पीटा और कई बार हिरासत में भी लिया. हालांकि अगर यह बिल संसद में पास हो जाता है तो महिलाओं के लिए बेहद खुशी की बात होगी.
ओबीसी महिलाओं को मिले हिस्सेदारी: इसके अलावा दलित महिलाओं के लिए काम करने वाली सुमेधा बोध ने बताया कि इस बिल को 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था. उस समय 13 पार्टियों के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन सरकार में शामिल जनता दल व कुछ अन्य पार्टी के नेता इस बिल के पक्ष में नहीं थे, जिससे इस बिल को रोक दिया गया था. महिला आरक्षण बिल पर हमेशा मांग रही है कि दलित वर्ग की महिलाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आने वाली महिलाओं को इसमें बराबर की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
नहीं होना चाहिए आभारी: साथ ही कई महिला नेताओं व हस्तियों ने भी 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिक्रिया दी है. सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा कि 'यह बिल सुनिश्चित करता है कि अगले परिसीमन अभ्यास तक महिलाएं चुनाव से वंचित रहें. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 2024 के चुनावों और 18वीं लोकसभा के गठन तक संसद में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी, कई विधानसभा चुनावों में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी... क्या महिलाओं को मोदी सरकार द्वारा लाए गए इस बिल के लिए आभारी होना चाहिए? मैं कहूंगी कि बिल्कुल भी नहीं.'