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पति ने लड़ी थी आज़ादी की लड़ाई, तीन हजार की पेंशन के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहीं बुजुर्ग - जस्टिस प्रतिभा एम सिंह

स्वतंत्रता सेनानी की 84 साल की विधवा को तीन हजार रुपये की पेंशन के लिए अदालत के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कड़ा ऐतराज जताया. इस पर कोर्ट ने 20 हजार रुपये लिटिगेशन कॉस्ट यानी वाद खर्च के रूप में इस बुजुर्ग को देने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया. साथ ही संबंधित अधिकारियों से इसका जवाब भी मांगा.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 3, 2023, 12:06 PM IST

नई दिल्लीः देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पत्नी को पेंशन के लिए चक्कर लगाने का एक मामला दिल्ली हाई कोर्ट के सामने आया. दिल्ली हाई कोर्ट ने पीड़िता को 20 हजार रुपये वाद खर्च देने का आदेश देने के साथ ही संबंधित अधिकारियों से जवाब भी मांगा है.

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने आदेश जारी करते हुए पीड़िता उषा देवी की पृष्ठभूमि और उम्र पर गौर किया जो एक स्वतंत्रता सेनानी की विधवा होने का दावा करती हैं. हाई कोर्ट ने पिछले साल दो दिसंबर को स्वतंत्रता सैनिक सम्मान योजना (एसएसएस) के तहत उन्हें पहले से मिल रही पेंशन को बहाल करने का आदेश जारी किया था. इसके बावजूद उन्हें फिर से उसी के लिए कोर्ट में आने को मजबूर होना पड़ा.

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याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार को दो दिसंबर के आदेश पर अमल करने का निर्देश देने की हाई कोर्ट से गुहार लगाई. उनका दावा है कि वह दिवंगत उदित नारायण चौधरी की पत्नी हैं, जो स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त 1942 में भाग लिया था. 1981 में उनके पति ने एसएसएस पेंशन स्कीम 1980-81 के तहत पेंशन के लिए आवेदन दिया.

केंद्र सरकार 2002 तक उन्हें नियमित रूप से पेंशन देती रही. हालांकि 2002 के बाद बिना कारण पेंशन रोक दी गई. 29 अप्रैल, 2006 में याचिकाकर्ता के पति का बीमारी और वृद्धावस्था के चलते निधन हो गया. हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने के साथ वाद खर्च के भुगतान का भी आदेश दिया. मामले में अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी.

बता दें कि पहले याचिकाकर्ता ने गृह मंत्रालय के फ्रीडम फाइटर डिविजन द्वारा 18 मार्च 1998 में जारी एक लेन को आधार बनाया और कहा कि उन्हें हर महीने तीन हजार रुपये की पेंशन पाने का हक है. कोर्ट ने उनके दावों को सही पाया और सरकार को उनकी पेंशन बहाल करने का निर्देश दिया था. लेकिन तब कोर्ट ने पेंशन रोके जाने के लिए केंद्र द्वारा बताए कारणों पर शक जताया था. मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट ब्रह्म नंद प्रसाद और केंद्र की ओर से स्टैडिंग काउंसिल अरुणिमा द्विवेदी व अन्य पेश हुए.

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