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दवाइयों में मानक से कम साल्ट होने पर बीमारी पर कम होता है असर: डॉक्टर ग्लैडबिन त्यागी

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jan 6, 2024, 4:57 PM IST

Delhi Fake Medicine Case: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पूर्वी दिल्ली शाखा के अध्यक्ष डॉक्टर ग्लैडबिन त्यागी का कहना है कि नकली दवाइयां हमारे शरीर को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसके सेवन से मरीज को ठीक होने में समय लग सकता है. या सही दवा नहीं मिलने से जीवन का खतरा भी हो सकता है.

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डॉक्टर ग्लैडबिन त्यागी

नई दिल्ली:बीमारियों से बचने के लिए दवाओं की जरूरत पड़ती है. अगर दवा नकली हो तो वह स्वास्थ्य को काफी नुकसान भी पहुंचा सकती है. दिल्ली के सरकारी अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिक में आपूर्ति होने वाली दवाइयों में से कुछ दवाइयां स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की गुणवत्ता जांच में फेल पाई गईं. उन दवाइयों को लेकर दिल्ली में राजनीति जारी है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि नकली दवाइयां हमारे शरीर में क्या नुकसान पहुंचा सकती है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पूर्वी दिल्ली शाखा के अध्यक्ष डॉक्टर ग्लैडबिन त्यागी का कहना है कि नकली दवाओं की कई तरह की परिभाषाएं हैं. जब किसी दवा की आपूर्ति स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की तरफ से की जाती है तो उन दवाइयों की जांच की जाती है. जांच करने पर अगर उस दवाई में जो साल्ट है उस साल्ट की मात्रा कुछ प्रतिशत कम पाई जाती है तो उस सैंपल को फेल माना जाता है. इस तरह उसको नकली दवाई भी कह सकते हैं.

डॉक्टर त्यागी ने आगे बताया कि इन दवाइयों के मरीजों को होने वाले नुकसान की बात करें तो अगर किसी दवाई में आवश्यक मात्रा से कम सॉल्ट होता है तो वह मरीज की बीमारी में कम असर करती हैं या असर धीरे-धीरे होता है. जिसकी वजह से मरीज को अधिक समय तक दवाई खानी पड़ सकती है. इसके अलावा अगर कोई एंटीबायोटिक दवाई है तो उस दवाई से मरीज को ठीक होने में समय लग सकता है. अगर दवाई में साल्ट की मात्रा बहुत कम है तो वह दवाई बिल्कुल भी असर नहीं करेगी. दवाई के असर न करने की वजह से बीमारी में एक रजिस्टेंस पैदा हो सकता है, जिससे मरीज को खतरा हो जाता है.

गौरतलब है कि, जिन दावाओं के सैंपल फेल हुए हैं, उनमें एम्लोडिपीन, लेवेटिरासेटम, पेंटोप्राजोल, सेफालेक्सिन, डेक्सामेथसोन और सोडियम वालपुरेट शामिल है. सोडियम वालपुरेट दवाई मानसिक रोगियों को दी जाती है. इसकी अधिक आपूर्ति इहबास अस्पताल में की जाती है. अस्पताल के निदेशक डॉक्टर राजिंदर कुमार धमीजा ने बताया कि जैसे ही हमें दवाई के अन स्टैंडर्ड पाए जाने की जानकारी मिली हमने उस बैच की सारी दवा को वापस सीपीए को भेज दिया था. अब दूसरे बैच के स्टॉक से मरीजों को दवाई दी जा रही है.

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