नई दिल्ली: आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. "स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान" विषय के तहत विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में एनसीएसटी के अध्यक्ष हर्ष चौहान मुख्यातिथि थे. इस अवसर पर एनसीएसटी सदस्य अनंत नायक विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने की. इस अवसर पर मुख्य अतिथि हर्ष चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में जनजातीय समुदायों की छवि और वास्तविकता के बीच बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए, इस तरह के आयोजनों से लोगों को जनजातीय आबादी के बारे में शिक्षित करने और भारतीय इतिहास में जनजातीय लोगों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाल कर उनकी धारणा को बदलने में मदद मिलेगी.
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इस अवसर पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने अपने संबोधन में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध का नेतृत्व करने वाले बिरसा मुंडा, तिलकामांझी, रानी चेन्नम्मा, भीमा नायक, चक्र बिसोई और उनके चाचा डोरा बिसोई, सिद्धू और कान्हू मुर्मू जैसे अनेकों प्रमुख जनजातीय क्रांतिकारियों के योगदान को रेखांकित किया. कहा कि हमें इन गुमनाम नायकों के योगदान को याद रखने की जरूरत है. एनसीएसटी की सचिव अलका तिवारी ने इस अवसर कहा कि संविधान द्वारा अनिवार्य एनसीएसटी की संरचना, कर्तव्यों, कार्यों और शक्तियों के बारे में लोगों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है. कार्यक्रम के विशेष अतिथि अनंत नायक ने कहा कि भारतीय इतिहास में जनजातीय समुदाय का योगदान अंग्रेजों के आगमन से बहुत पुराना है, जिसे रामायण और महाभारत के काल में भी देखा जा सकता है.