नई दिल्ली: साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि हाशिए पर रहे ट्रांसजेंडर/एलजीबीटीक्यू लेखन ने पिछले कुछ वर्षों में नए आयाम खोले हैं. और अभिव्यक्ति की एक समानांतर धारा का निर्माण किया है. ये बातें उन्होंने साहित्य अकादमी में गुरुवार को ट्रांसजेंडर लेखन की रचनात्मक अभिव्यक्ति और सौंदर्यशास्त्र विषयक परिसंवाद के उद्घाटन वक्तव्य में कही.
उन्होंने आगे कहा कि हमारे सपनों और आकांक्षाओं का कोई जेंडर नहीं होता है. अतः रचना को केवल रचना की दृष्टि से ही देखना चाहिए. हर किसी की पीड़ा एक समान होती है और उसको महसूस करना हम सभी का कर्त्तव्य है. साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी का स्वागत अंगवस्त्रम् से करते हुए कहा कि पिछले कुछ समय में ट्रांसजेंडर लेखन को मुख्य धारा में थोड़ी पहचान मिलना आरंभ हुआ है. लेकिन इससे भी ज्यादा ज़रूरी है कि इसका संरक्षण और संवर्धन.
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साहित्य अकादमी इसके लिए निरंतर प्रयासरत है और इस तरह के कार्यक्रम लगातार करती रहती है. परिसंवाद के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए साहित्य अकादमी की अंग्रेज़ी पत्रिका ‘इंडियन लिटरेचर’ की अतिथि संपादक सुकृता पॉल कुमार ने कहा कि ट्रांसजेंडर लेखन को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए हमें ऐसे टूल खोजने होंगे जिनसे उनको व्यापक रूप से समझा और सहेजा जा सके. उन्होंने इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सभी का सहयोग माँगा और ‘इंडियन लिटरेचर’ का एक अंक ट्रांसजेंडर लेखन पर केंद्रित करने की बात भी कही.
परिसंवाद में पूरे देश से विभिन्न भारतीय भाषाओं के ट्रांसजेंडर लेखक, कार्यकर्त्ता और विद्वानों ने हिस्सा लिया. प्रथम सत्र ट्रांसजेंडर लेखन के विशिष्ट लक्षण और सौंदर्यशास्त्र, विषय पर केंद्रत था, जिसमें ए.रेवती, अजान सिंह, कल्कि सुब्रह्मण्यम, देविका देवेंद्र एस. मंगलामुखी, कुहू चन्नना, मानबी बंद्योपाध्याय तथा संजना साइमन ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए.
ट्रांसजेंडर लेखन के लिए महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक उपकरणों का विकास विषयक द्वितीय सत्र में भैरवी अमरानी, दिशा शेख, सांता ख़ुराई, शिवांश ठाकुर, सुमन महाकुड, विजयराजमल्लिका ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए. तृतीय सत्र में सभी आमंत्रित ट्रांसजेंडर लेखकों का रचना-पाठ और संवाद सत्र हुआ. कार्यक्रम का सार-संक्षेप चंदना दत्ता ने प्रस्तुत किया तथा सत्रों का संचालन सृकृता पॉल कुमार ने किया.
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