नई दिल्ली: कड़कड़डूमा कोर्ट परिवार न्यायालय द्वारा मध्यस्थता के लिए भेजे गए एक तलाक के मामले में एक करोड़ 80 लाख रुपए की धनराशि में दोनों पक्षों में समझौता हुआ है. समझौते के तहत पति को पत्नी को तलाक के बदले एक करोड़ 80 लाख रुपये की धनराशि का 60 दिन की समय सीमा में भुगतान करना होगा. पति ने वर्तमान और भविष्य के सभी खर्चो को एक साथ देते हुए इस धनराशि पर सहमति व्यक्ति की. इसके बाद शिकायतकर्ता की पत्नी भविष्य में किसी और गुजारा भत्ते की हकदार नहीं होगी.
कोर्ट ने शिकायतकर्ता पति को 50 लाख, 70 लाख, 25-25 लाख और 10 लाख रुपये की पांच किस्तों में यह धनराशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है, जिसमें से 50 लाख की धनराशि एफडी के रूप में दोनों नाबालिग बच्चियों के नाम दी जाएगी. दरअसल, लक्ष्मी नगर के रहने वाले दंपत्ति की शादी वर्ष 2007 में हुई थी. वर्ष 2016 में आपसी कलह के चलते दोनों अलग-अलग रहने लगे. 9 वर्ष के वैवाहिक जीवन में दंपति की 12 वर्ष और 7 वर्ष की दो बेटियां हैं, जिनके पालन पोषण का जिम्मा आपसी सहमति से मां ने लिया है.
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शिकायतकर्ता पति के वकील मनीष भदौरिया ने बताया कि साल 2016 से 2023 तक दंपति के तलाक का मुकदमा पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के यहां चल रहा था. दोनों की सहमति से अक्टूबर माह में मध्यस्थता केंद्र को भेजा गया, जहां पर मैंने अपने मुवक्किल को पत्नी को गुजारा भत्ता देकर मामले को आपसी सहमति से खत्म करने के लिए राजी किया. इसके बाद पति-पत्नी को मुआवजा देकर तलाक लेने को तैयार हो गया. लेकिन, पत्नी द्वारा शुरू से ही मकान का एक फ्लोर अपने नाम किए जाने की शर्त थी, जिस पर पति ने फ्लोर देने के बजाय फ्लोर को बेचकर उसकी धनराशि पत्नी को देने पर समझौता किया.
पति का कहना था कि पत्नी ने उनके परिवार व माता-पिता को इतना ज्यादा प्रताड़ित किया है कि वह अपने घर के किसी भी हिस्से में पत्नी को नहीं रख सकता है. इसलिए पत्नी को वह एक फ्लोर देने के बजाय उसको बेचकर उससे प्राप्त धनराशि को गुजारा भत्ते के रूप में पत्नी को दे देगा. एडवोकेट मनीष भदौरिया ने बताया कि नवंबर माह तक शिकायतकर्ता ने पत्नी को 10 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया है. बाकी की धनराशि का भुगतान भी वह कोर्ट द्वारा तय समय सीमा के अंदर कर देगा.
भदौरिया ने बताया कि शिकायतकर्ता ने अपनी पत्नी द्वारा खुद पर किसी दूसरी महिला के साथ अवैध संबंध को लेकर आरोप लगाते हुए गृहक्लेश शुरू कर दी थी, जिससे परेशान होकर वह वर्ष 2016 से अपने पैतृक मकान में रह रही पत्नी को छोड़कर अलग रहने लगा था. इसके बाद पत्नी ने उसके भाई-बहन और माता-पिता पर भी प्रतिदिन प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए कई मुकदमे दर्ज करा दिए. इतना ही नहीं पत्नी ने उस पर भी घरेलू हिंसा और गुजारा भत्ता देने का भी मुकदमा दर्ज करा दिया था. इसके बाद पत्नी से तलाक लेने के अलावा उसके पास कोई और चारा नहीं बचा था. इसलिए उसने पत्नी से तलाक लेने के लिए मुकदमा दायर किया. जिसकी मध्यस्थता केंद्र में 2 तारीख को पर सुनवाई के बाद आपसी सहमति से निपटारा हो गया. सात साल तक कोर्ट में केस लड़ने के बाद उसको मध्यस्थता का रास्ता ही सही लगा और पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह इतना भारी भरकम खर्च उठाने के लिए भी तैयार हो गया.
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