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दिल्ली हिंसा: आरोपी इरशाद अली की जमानत याचिका खारिज

दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल (Constable Ratan Lal) की हत्या के एक आरोपी इरशाद अली (Delhi Violence Accused Irshad Ali) की जमानत याचिका खारिज कर दिया गया. इसे लेकर दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में सुनवाई हो रही थी.

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इरशाद अली की जमानत याचिका खारिज

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Published : Jun 10, 2021, 12:44 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल (Constable Ratan Lal) की हत्या के एक आरोपी इरशाद अली (Delhi Violence Accused Irshad Ali) की जमानत याचिका खारिज कर दिया है. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने कहा कि आरोपी के खिलाफ लगे आरोप काफी गंभीर हैं.

गवाहों को धमका सकता है आरोपी

कोर्ट ने कहा कि इस मामले के गवाह उसी इलाके में रहते हैं जहां आरोपी का घर है. ऐसे में अगर उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा तो वो गवाहों को धमका सकता है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले के सह-आरोपियों मोहम्मद इब्राहिम, बदरुल हसन, मोहम्मद आरिफ, शादाब अहमद, मोहम्मद सलीम खान और मोहम्मद फुरकान की जमानत याचिकाएं कोर्ट खारिज कर चुका है. इस सभी पर वही आरोप हैं जो आरोपी इरशाद के खिलाफ हैं. ऐसे में आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती हैं.

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दो सह-आरोपियों को मिल चुकी है जमानत

सुनवाई के दौरान इरशाद अली की ओर से वकील सलीम मलिक ने कहा कि इस मामले के सह-आरोपी मोहम्मद दानिश को हाईकोर्ट ने पिछले 16 फरवरी को जमानत दी थी. इसके अलावा इस मामले के एक और आरोप मोहम्मद मंसूर को हाईकोर्ट ने पिछले 24 मई को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. उन्होंने समानता के आधार पर आरोपी इरशाद को जमानत देने की मांग की. सलीम मलिक ने कहा कि इरशाद अली को दयालपुर थाने में दर्ज दो एफआईआर के मामले में जमानत मिल चुकी है.

झूठे तरीके से फंसाने का आरोप

सलीम मलिक ने कहा कि आरोपी को झूठे तरीके से फंसाया गया है. आरोपी को उसके घर से 4 दिसंबर 2020 को पुलिस ने उठाया और उसे झूठे मामले में फंसा दिया. आरोपी 7 दिसंबर 2020 से न्यायिक हिरासत में है. मलिक ने कहा कि आरोपी 24 फरवरी 2020 के पहले या बाद में कभी भी हिंसा में लिप्त नहीं रहा. आरोपी का एफआईआर में नाम नहीं था. एफआईआर भी घटना के 24 घंटे के बाद दर्ज किया गया, जिसकी देरी की कोई वजह नहीं बताई गई. मलिक ने कहा कि आरोपी के पास से कोई घातक हथियार बरामद नहीं किए जा सके हैं, जो ये बता सकें कि हेड कॉन्स्टेबल (Constable Ratan Lal) की हत्या उस हथियार से हुई थी.

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भीड़ ने पुलिस पर हमला किया

दिल्ली पुलिस की ओर से वकील अमित प्रसाद ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि एफआईआर चांदबाग के बीट कॉन्स्टेबल सुनील कुमार के बयान के आधार पर दर्ज किया गया. चांदबाग में डेढ़ महीने से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सर्विस रोड मेन वजीराबाद रोड पर विरोध प्रदर्शन चल रहे थे. सुनील कुमार 24 फरवरी को दूसरे स्टाफ के साथ अपनी ड्यूटी पर था. उसके साथ गोकुलपुरी के एसीपी अनुज कुमार अपने सहयोगियों के साथ मौजूद थे.

शाहदरा जिले के डीसीपी अमित शर्मा भी अपने स्टाफ के साथ मौजूद थे. करीब दोपहर एक बजे कुछ प्रदर्शनकारी डंडों, लाठियों, बेसबॉल बैट, लोहे के रॉड और पत्थरों के साथ वजीराबाद मेन रोड पर आ गए. उन्हें वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने रोकने की कोशिश की लेकिन प्रदर्शकारी नहीं माने. भीड़ अनियंत्रित हो गई और पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाने लगे और सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगे.

भीड़ को लाउडस्पीकर से चेतावनी दी गई लेकिन वे नहीं माने. जब अनियंत्रित भीड़ नहीं मानी तो उसे तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया. इस दौरन कॉन्स्टेबल सुनील को चोटें आई. भीड़ ने शाहदरा के डीसीपी, गोकुलपुरी के एसीपी और हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल पर हमला कर दिया. रतनलाल रोड पर गिर गए और उन्हें गंभीर चोटें आई.

हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की मौत हो गई थी

दिल्ली पुलिस ने कहा कि भीड़ ने रोड पर खड़े सरकारी और निजी वाहनों को आग लगा दिया. सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान होने से बचाने के लिए रिजर्व बलों को वहां बुलाया गया. करीब दो घंटे के संघर्ष के बाद स्थिति को काबू में लाया गया. सभी घायलों को अस्पताल ले जाया गया, जहां पता चला कि हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की मौत हो चुकी है और शाहदरा के डीसीपी बेहोशी की हालत में थे. जांच के दौरान पचास पुलिसकर्मियों के एमएलसी एकत्र किए गए. इस मामले की जांच के लिए बाद में एसआईटी का गठन किया गया और उसे क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया.

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