नई दिल्ली:राजधानी की सबसे बड़ी समस्या वर्तमान में कूड़े के पहाड़ की समस्या है. जिसकी वजह से ना सिर्फ दिल्ली का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लोगों को कई गंभीर बीमारियों का सामना भी करना पड़ रहा है. इस बीच सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा लैंडफिल साइट्स पर कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान को लेकर निगम द्वारा की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर आपत्ति जताते हुए उसे जरूरत के मुताबिक कई गुना धीमा बताया गया है.
साल 2019 में जब तीनों निगमों ने मशीनों की सहायता से कूड़े के पहाड़ों पर निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया था. तब से लेकर अब तक महज 23.5 लाख टन कूड़े का ही निष्पादन हो पाया है जो कि कोई कूड़े का 8.3% है जो चिंता का विषय है.
दिल्ली के अंदर कूड़ा बहुत बड़ी समस्या:
- सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के द्वारा कूड़े के पहाड़ पर की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर चिंता जताई जा चुकी है. जरूरत के मुताबिक, निष्पादन के प्रक्रिया की रफ्तार कई गुना धीमी है.
- 2019 से शुरू की गई कूड़े के पहाड़ों की निष्पादन की प्रक्रिया के तहत मैच 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया गया. जबकि कुल कूड़े की संख्या 280 लाख मेट्रिक तन से भी ज्यादा है.
- नगर निगम द्वारा कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान के मद्देनजर लगभग 250 करोड़ रुपये जैसी बड़ी राशि अलॉट की गई है.
- पहले ही दो बार कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर निगमों द्वारा डेडलाइन आगे बढ़ाई जा चुकी है.
- वर्तमान में जिस रफ्तार से काम हो रहा है उसी रफ्तार से काम करने पर अगले कई सालों तक दिल्ली से कूड़े के पहाड़ खत्म नहीं होंगे.
वर्तमान में दिल्ली के तीन अलग-अलग कोनों में बने हुए कूड़े के पहाड़ हैं, जिसके समाधान के मद्देनजर लगातार दिल्ली के तीनों नगर निगमों द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं. भलस्वा, ओखला और गाजीपुर में स्थित इन तीनों कूड़े के पहाड़ों से ना सिर्फ राजधानी के पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि लोगों के लिए भी यह परेशानी का सबब बने हुए हैं, लेकिन उसके बावजूद अभी तक कूड़े के पहाड़ की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है.
गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट पर सालों से बन रहे इन कूड़े के पहाड़ों को कम करने की कोशिश लगातार निगम कर रहे हैं, लेकिन जिस रफ्तार से इन्हें खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है, वह शंका के घेरे में है.
जानकारी के मुताबिक, तीनों कूड़े के पहाड़ों पर लगभग 280 लाख मैट्रिक टन कूड़े का अंबार साल 2019 में था. जब कूड़े के निष्पादन को लेकर प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. पिछले दो साल से तीनो लैंडफिल साइट पर कूड़े के निष्पादन को लेकर बकायदा ट्रोमेल मशीनें भी लगाई गईं और लगातार मशीनों की संख्या को भी बढ़ाया जा रहा है.
उसके बावजूद अभी तक कूड़े के इन विशाल पहाड़ों की समस्या खत्म होती नजर नहीं आ रही है. बीते दो साल में जब से दिल्ली की तीनों लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के लिए निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया गया है. ट्रोमेल मशीनों की सहायता से तब से अब तक लगभग 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया जा सका है. जोकि निगम द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य से काफी कम है.
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आसान शब्दों में कहें तो तीनों लैंडफिल साइट पर नगर निगम के द्वारा कूड़े के निष्पादन की जो प्रक्रिया है उसकी रफ्तार बहुत धीमी है और दो साल के समय में तीनों लैंडफिल साइट पर मौजूद कूड़े के महज 8.3% हिस्से को ही निष्कासित किया जा सका है. जिस तरह से तीनों नगर निगमों के द्वारा कूड़े के पहाड़ के समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर कूड़े के निष्पादन की प्रक्रिया की जा रही है. उसकी रफ्तार देखते हुए लगता है कि आने वाले कई साल तक कूड़े के पहाड़ राजधानी दिल्ली की समस्या बने रहेंगे.
तीनों नगर निगम के द्वारा पहले ही कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर डेडलाइन को दो बार रिवाइज किया जा चुका है, लेकिन लगता नहीं है कि अगले एक-दो साल में लैंडफिल साइट का 50% हिस्सा भी खत्म हो पाएगा.
दिल्ली की तीनों नगर निगमों ने CPCB और दिल्ली सरकार को जो वर्तमान में लैंडफिल साइट के मद्देनजर रिपोर्ट दी है. उसके मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट पर वर्तमान समय में सबसे ज्यादा कूड़ा है जोकि करीब 140 लाख मैट्रिक टन है. वहीं नॉर्थ एमसीडी ने भलस्वा में मौजूद लैंडफिल साइट पर वर्तमान में 80 लाख मैट्रिक टन कूड़ा है, जबकि साउथ एमसीडी की लैंडफिल साइट जो ओखला में स्थित है उसमें 60 लाख मैट्रिक टन कूड़ा एकत्रित है. जिसके निष्पादन की प्रक्रिया निगमों के द्वारा लगातार की जा रही है.