नई दिल्ली:दिल्ली के पास कोई जल स्त्रोत नहीं है. दिल्ली पानी के लिए पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा पर निर्भर है. जिसके चलते इन राज्यों से दिल्ली का विवाद होता रहा है. इस समय दिल्ली हरियाणा के बीच जल विवाद एक बार फिर बढ़ता दिखाई दे रहा है. दिल्ली सरकार राजधानी में पानी की कमी के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रहा है. दिल्ली जल बोर्ड ने हरियाणा पर पानी की कटौती का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है. वहीं हरियाणा सरकार ने दिल्ली सरकार के आरोपों को नकारते हुए दिल्ली सरकार पर पानी की बर्बादी का आरोप लगा रही है.
पानी रोके जाने के विरोध में दिल्ली जल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे को लेकर होने वाला विवाद नया नहीं है. यह विवाद 1956 से ही चल रहा है. इस बीच दोनों सरकारें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ती रही हैं, लेकिन ये समस्या आज भी नहीं सुलझी है. बरसात के दिनों में जब यमुना का जलस्तर बढ़ता है तो दिल्ली में जलभराव की समस्या आ जाती है, वहीं जब गर्मी के समय में दिल्ली बूंद-बूंद के लिए तरसती है तो हरियाणा सरकार पर पानी की कटौती के आरोप लगते रहे हैं.
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इसको लेकर ऊपरी यमुना नदी बोर्ड बनाया गया. जिसमें पानी के बंटवारे की सीमा तय की गई. उसके बाद में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1996 में दिल्ली को 450 क्यूसिक पानी प्रतिदिन देने का निर्देश दिया. दिल्ली सरकार का आरोप है कि हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मान रही है और लगातार दिल्ली के हक का पानी रोक रही है.
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दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा का आरोप है कि हरियाणा यमुना नदी में 221 क्यूसेक यानी करीब 100 MGD पानी कम छोड़ रहा है. जिसके चलते दिल्ली के तीन बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के प्रोडक्शन में 100 MGD की कमी आई है. जो 245 MGD से घटकर 145 MGD हो गई है. वहीं चंद्रावल में 90 MGD से घटकर 55 MGD, वजीराबाद में 135 MGD से घटकर 80 MGD और ओखला में 20 MGD से घटकर 15 MGD रह गई है.