नई दिल्ली:हिंदी भवन में मंगलवार को दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन ने आदि शंकारचार्य जयंती समारोह का आयोजन किया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रवादी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने की. प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के तौर पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामि चिदानंद शामिल हुए. उन्होंने आदि शंकराचार्य के जीवन में किये कार्यों को याद किया. साथ ही आह्वान किया कि मनुष्यों को उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए. आदि शंकराचार्य ने देशभर की संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने का काम किया. उन्होंने दक्षिण को उत्तर और पूर्व को पश्चिम से जोड़ने का काम किया.
समारोह में साहित्यकार इंदिरा मोहन की लिखित और प्रकाशित 'श्रीशांकर भाष्य सार' का लोकार्पण भी किया गया. कार्यक्रम में तपोमुनि स्वामी स्वयं प्रकाश गिरी महाराज ने दर्शकों को आशीर्वचन दिए गए. समारोह में दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और वरिष्ठ पुस्तक समीक्षक पदमश्री राम बहादुर राय ने इंदिरा मोहन की किताब का विश्लेषण किया. समारोह में मंचन संचालन दिल्ली हिंदी साहित्य समारोह की साहित्य मंत्री और सत्यवती महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. रचना विमल ने किया.
सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और विकास में आदि शंकराचार्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है. आदि शंकराचार्य का जन्म आदिकाल 788 ई. में केरल के कलादी गांव में हुआ था. सांसारिक मनुष्य जहां 30-32 साल की उम्र में जीवन जीने और अर्थ उपार्जन के तौर तरीकों को सीखने में व्यस्त रहता है, उस आयु में आदि शंकराचार्य ने दुनिया को अपना ज्ञान देकर हिमालय क्षेत्र में समाधि ले ली.
चारों दिशाओं में मठों की स्थापना:आदि गुरु शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में मठ की स्थापना की थी. इसमें गोवर्धन, पूर्व में जगन्नाथपुरी (ओडिशा), पश्चिम में द्वारका शारदामठ (गुजरात), उत्तर में ज्योतिर्मठ बद्रीधाम (उत्तराखंड) और दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में शामिल हैं. आदि शंकराचार्य ने ही चारों मठों में सबसे योग्य शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरू की थी. तब से ही इन मठों के मठाधीश को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती रही है.
माना जाता है कि आदि शंकराचार्य के माता-पिता यानि शिवगुरु और विशिष्ठा देवी बहुत दिनों तक नि:संतान थे, लेकिन जब उन्होंने भगवान शिव की अखंड साधना की, तो महादेव ने स्वयं उनको दर्शन दिया. दोनों ने महादेव से वरदान मांगा कि वो उनके घर में जन्म लें. इसके बाद आदि शंकर का जन्म वैशाख मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ. वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है. इस साल यह तिथि आज यानि 25 अप्रैल 2023 को पड़ी, इसलिए मंगलवार को देशभर में आदि शंकराचार्य जी की जयंती मनाई गई.